Audyogik Kranti Kya Hai | औद्योगिक क्रांति क्या है | Audyogik Kranti Se Aap Kya Samajhte Hain | Audyogik Kranti Ke Karan | Audyogik Kranti Sarvpratham Kahan Hui Thi | Udyogik Kranti Ka Arth | Audyogik Kranti Kiski Den Thi
इंसानों के द्वारा मशीनों का प्रयोग, पहिए की खोज करने जैसा ही माना जा सकता है, जिसने मानव जीवन को बदल के रख दिया, आज के समय में विकसित उद्योगों की नींव सालों पहले मशीनों के प्रयोग की शुरुआत से ही हुई, इसलिए इस औद्योगिक क्रांति की संज्ञा दी जाती है।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, औद्योगिक क्रांति के बारे में यह औद्योगिक क्रांति क्या है? इसके कारण और इंग्लैंड और यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति के बारे में बात करेंगे, उम्मीद करता हूं… आपको यह लेख पसंद आएगा।
औद्योगिक क्रांति क्या है? Audyogik Kranti Kya Hai –

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, मानव जीवन में भी क्षण प्रतिक्षण परिवर्तन होते रहते हैं और अपने आप ही तीव्र गति से होने वाला परिवर्तन ‘क्रान्ति’ कहलाता है।
18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में औद्योगिक व्यवस्था में जब क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए तब विश्व के इतिहास में इस घटना को “औद्योगिक क्रान्ति” कहा गया।
या इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि “मशीनों एवं नवीन तकनीक के विकास से औद्योगिक क्षेत्र में हुए तीव्र परिवर्तन को औद्योगिक क्रान्ति कहा जाता है।” औद्योगिक क्रान्ति में पशु-शक्ति एवं मानव-शक्ति का स्थान मशीनों ने ले लिया तथा कुटीर उद्योगों का स्थान बड़े उद्योगों ने ले लिया।
औद्योगिक क्रान्ति के कारण आर्थिक जीवन में आमूल चूल परिवर्तन हो गये, इंग्लैण्ड ने जब कुटीर उद्योगो को त्यागकर कारखाना प्रणाली के लिए मशीनों का प्रयोग प्रारम्भ किया तो इतिहास में यही घटना औद्योगिक क्रान्ति के रूप में जानी जाती है।
जोसेफ रीथर ने औद्योगिक क्रान्ति को इन शब्दों में परिभाषित किया है- “औद्योगिक क्रान्ति मूलतः वह प्रक्रिया थी जिसके द्वारा दस्तकारी के स्थान पर मशीनों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ।”
इसीलिए औद्योगिक क्रान्ति को ‘शिल्प क्रान्ति’ भी कहा जाता है। औद्योगिक क्रान्ति ने इंग्लैण्ड की औद्योगिक प्रणाली को पूर्णतः बदल दिया था।
औद्योगिक क्रान्ति ने यहीं से यूरोपीय देशों में पैर फैलाए एवं धीरे-धीरे उसने पूरे विश्व को अपने घेरे में ले लिया।
पूँजीपति वर्ग का उदय होने से उत्पादन के साधनों-भूमि, श्रम, पूँजी, प्रबन्ध और साहस पर पूँजीपतियों का अधिकार हो गया, उत्पादन में तेजी से वृद्धि होने लगी और नई अर्थव्यवस्था का उदय हो गया।
Audyogik Kranti Ke Karan –
यूरोपीय देशों में तेजी से औद्योगिक क्रान्ति प्रारम्भ हुई जिसके प्रमुख कारणों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
कच्चे माल की उपलब्धता –
औद्योगिक क्रान्ति का प्रारम्भ यूरोप में सबसे पहले इंग्लैण्ड में हुआ था। इसका प्रमुख कारण कच्चे माल की उपलब्धता थी। मशीनों के विकास से उन्हें बड़े-बड़े कारखानों को चलाने के लिए कच्चे माल-कोयला, लोहा आदि की आवश्यकता हुई और कोयला और लोहा उन्हें निकटवर्ती क्षेत्रों में सुगमता से उपलब्ध था। अतः उन्हें कोयले से लोहे को पिघला कर एवं शक्ति के साधन के रूप में प्रयोग करके नये-नये कारखानी की स्थापना करने की प्रेरणा मिली।
पर्याप्त पूँजी –
अंग्रेज व्यापारियों ने पूर्वी देशों से व्यापार करके अत्यधिक लाभ अर्जित कर लिया था जिससे उनके पास बड़े उद्योगों को लगाने एवं उनका विकास करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पूँजी थी। इस कारण से नये उद्योगों के विकास में सहायता मिली। जिसने औद्योगिक क्रान्ति को जन्म दे दिया।
उपनिवेशों की स्थापना –
उपनिवेशों की स्थापना से कारखानों के लिए कच्चा माल सुगमता से उपलब्ध हो गया तथा तैयार माल की बिक्री के लिए उपनिवेश विस्तृत बाजार बन गये। इसीलिए फ्रांस, इंग्लैण्ड, हालैण्ड तथा स्पेन आदि यूरोपीय देशों ने अमेरिका, अफ्रीका एवं एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित किये थे।
माँग में वृद्धि –
यूरोपीय देशों द्वारा तैयार किया गया माल बड़े कारखानों में बनने के कारण सस्ता एवं अच्छी किस्म का होता था तथा माँग के अनुरूप पूर्ति तेजी से सम्भव हो जाती थी। इस माँग की वृद्धि को देखते हुए यूरोपीय देशों में बड़े उद्योगों का विकास और अधिक तेजी से हुआ जिससे औद्योगिक क्रान्ति की गति तेज होती चली गयी।
सस्ते श्रमिक –
कुटीर उद्योगों एवं निजी उद्योग बड़े कारखानों के सामने टिक नहीं सके। कुटीर उद्योगों एवं शिल्पकारों का माल महँगा होता था जबकि उनके लिए बढ़ती माँग की पूर्ति कर पाना भी सम्भव नहीं था इसलिए उनका पतन हो गया और शिल्पकार बेकार हो गये। इससे पूँजीपतियों को सस्ती दर पर श्रमिक मिल गये और उन्हें उनका औद्योगिक विकास में सहयोग प्राप्त हो गया। इसके अतिरिक्त कृषिकार्यों में नई तकनीक का विकास होने एवं चकबन्दी के कारण भी छोटे किसान बेकार हो गये थे। वे रोजगार की खोज में शहरों की ओर चले गये जिससे पूँजीपतियों को सस्ती दर पर श्रमिक सुलभ हो गये।
यातायात व शक्ति के साधनों का विकास –
यातायात एवं शक्ति के साधनों के विकास से भी औद्योगिक क्रान्ति को बल मिला। भाप के इंजन, रेल के इंजन, सड़कों के विकास तथा जलयानों के विकास से एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी कम हो गयी तथा समय की बचत होने लगी। कच्चा माल ले जाने एवं तैयार माल भेजने तथा श्रमिकों को आने-जाने की सुविधा होने से औद्योगिक क्रान्ति को गति मिल गयी।
वैज्ञानिक प्रगति –
नई-नई वैज्ञानिक तकनीकियों एवं कृषि की सुधरी हुई वैज्ञानिक पद्धतियों से उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई जिससे उद्योगों से सम्बन्धित कच्चा माल, मशीने तथा शक्ति के साधन समुचित मात्रा में सुलभ होने लगे। इससे औद्योगिक क्रान्ति को अत्यधिक बल मिला।
कोयले और लोहे की सुलभता –
कोयला और लोहा औद्योगिक क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। कोयले और लोहे की सुलभता ने मशीनों और उपकरणों के निर्माण में सहयोग देकर औद्योगिक क्रान्ति को सफल बना दिया। मशीनों और उपकरणों की सुलभता नये कारखाने स्थापित करने की प्रेरणा दी।
चालक शक्ति का विकास –
इंग्लैण्ड ने कोयले और भाप की चालक शक्ति का विकास करके मशीनों को चलाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। भाप के इंजन के आविष्कार ने मशीनों के संचालन में सहयोग देकर औद्योगिक क्रान्ति को सफल बना दिया।
सामन्तवाद का अन्त –
पुनर्जागरण के कारण यूरोप के सभी देशों से सामन्तवाद का अन्त हो गया था अतः सामन्त अपनी पूँजी को नये-नये उद्योगों में लगाकर औद्योगिक विकास को बढ़ावा दे रहे थे। इस प्रकार औद्योगिक विकास औद्योगिक क्रान्ति का जनक बन गया।
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औद्योगिक क्रान्ति इंग्लैण्ड में ही क्यों प्रारम्भ हुई? –
औद्योगिक क्रान्ति को जन्म देने का श्रेय इंग्लैण्ड को ही दिया जाता है। अठारहवीं शताब्दी में हुए उद्योगों के मशीनीकरण एवं औद्योगीकरण में इंग्लैण्ड अग्रणी रहा।
इस दिशा में अन्य राष्ट्रों ने भी प्रयत्न किये परन्तु सर्वप्रथम सफलता इंग्लैण्ड को ही मिली। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति प्रारम्भ होने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे-
विस्तृत साम्राज्य –
इंग्लैण्ड ने उपनिवेशीकरण के माध्यम से एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना कर ली थी, ये उपनिवेश इंग्लैण्ड के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुए।
इन उपनिवेशों से कच्चा माल बहुतायत में और सस्ता उपलब्ध हो जाता था। ये उपनिवेश इंग्लैण्ड में तैयार माल के लिए विस्तृत बाजारों का भी काम करते थे। इससे इंग्लैण्ड में औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिला और वहाँ औद्योगिक क्रान्ति प्रारम्भ हो गयी।
जनोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन –
उत्पादन की दृष्टि से फ्रांस भी पर्याप्त आगे बढ़ा हुआ था, परन्तु वहाँ जिन वस्तुओं का उत्पादन होता था वे विलासिता की थी।
इसके विपरीत इंग्लैण्ड में उन वस्तुओं का उत्पादन होता था जो जनता के आवश्यक उपयोग की और सस्ती थी तथा जिनकी मांग निरन्तर बढ़ती रहती थी। ऊनी और सूती कपड़े, लोहे एवं लकड़ी के सामान इसी श्रेणी में आते है।
कृषि क्रान्ति –
इंग्लैण्ड में हुई कृषि क्रान्ति भी औद्योगिक क्रान्ति में अत्यधिक सहायक हुई। कृषि क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि में परिवर्तन हुए और भूमि पर जमीदारों का आधिपत्य हो गया।
इससे कृषि पर निर्भर एक बहुत बड़ा वर्ग बेरोजगार हो गया। चूँकि ये लोग अब आजीविका के लिए अन्य व्यवसायों की ओर जाने लगे थे अतः ये उद्योगों के लिए सस्ते श्रमिक के रूप में उपलब्ध हो गये।
यह समय वह था जब इंग्लैण्ड औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा था। ऐसे समय इन सस्ते श्रमिकों के मिलने से इंग्लैण्ड के औद्योगिक विकास और मशीनीकरण को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला जिसने औद्योगिक क्रान्ति का शुभारम्भ कर दिया।
शान्ति एवं सुरक्षा –
इंग्लैण्ड में इस समय औद्योगिक क्रान्ति के अनुकूल वातावरण भी था, देश में शान्ति और व्यवस्था थी, धनी लोगों को कानूनी संरक्षण के साथ-साथ पर्याप्त स्वतन्त्रता भी प्राप्त थी।
इंग्लैण्ड में एक ऐसा औद्योगिक वर्ग था जो मशीनों का उपयोग करने के लिए तत्पर था। यही वर्ग सत्ताधारी था, इसलिए इसे सरकार का सहयोग प्राप्त था।
इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से औद्योगिक क्रान्ति अन्य किसी देश में न होकर इंग्लैण्ड में ही प्रारम्भ हुई।
यूरोप के प्रमुख देशों में हुई औद्योगिक क्रान्तियाँ –
यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति मुख्य रूप से इंग्लैण्ड से फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस आदि देशों में फैली और फिर धीरे-धीरे यह अन्य यूरोपीय देशों में भी फैल गयी। इन देशों की औद्योगिक क्रान्ति का संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है-
इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति –
विश्व में सबसे पहले औद्योगिक क्रान्ति इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई थी। बड़े पूँजीपतियों ने बड़ी-बड़ी मशीने लगाकर बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना की जिससे नये-नये वैज्ञानिक आविष्कारों एवं कृषियन्त्रों के विकास को प्रोत्साहन मिला तथा वाणिज्य के क्षेत्र में व्यापक विस्तार हुआ, इंग्लैण्ड को औद्योगिक क्रान्ति का जनक कहा जाता हैं।
फ्रांस की औद्योगिक क्रान्ति –
राजा लुई एवं फिलिप के शासनकाल में उद्योगों के विकास को अधिक प्रोत्साहन दिया गया था।
मजदूरों के आन्दोलनों को दबाया गया जिससे इस काल में उद्योगों में अत्यधिक वृद्धि हुई। यातायात के साधनों के विकास से कृषि एवं वाणिज्य के क्षेत्र में भी तीव्र गति से विकास हुआ।
जर्मनी की औद्योगिक क्रान्ति –
मुद्रण कला का विकास एवं मशीनों के निर्माण में प्रगति होने से जर्मनी में उद्योगों का तेजी से विकास हुआ।
जर्मनी की मशीनों को अन्य देशों में अधिक पसंद किया जाता था। इनकी माँग में वृद्धि होने से औद्योगिक विकास की गति मिली, आज भी जर्मनी मशीनें विश्व में श्रेष्ठ मानी जाती है, इन मशीनों ने यहाँ औद्योगिक क्रान्ति का पथ प्रशस्त कर दिया।
इटली की औद्योगिक क्रान्ति –
देश का एकीकरण हो जाने के बाद इटली के उद्योगों की तेजी से प्रगति हुई। परिवहन के साधनों के विकास से उद्योगों में तेजी से विकास हुआ।
रूस की औद्योगिक क्रान्ति –
एलैक्जेंडर तृतीय के शासनकाल में रूस के उद्योगों में प्रगति होने लगी थी लेकिन वास्तविक औद्योगिक विकास 1918 ई० के पश्चात प्रारम्भ हुआ, धीरे-धीरे रूस औद्योगिक विकास में आगे बढ़ता चला गया।
औद्योगिक क्रान्ति का प्रसार –
इंग्लैण्ड एवं यूरोप के अन्य देशों में औद्योगिक क्रान्ति होने से वहाँ के कृषि, उद्योगों, वाणिज्य, सामाजिक व आर्थिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, औद्योगिक क्रान्ति के प्रसार को का हम निम्न शीर्षकों में उल्लेख करेगे-
उद्योग धन्धे और औद्योगिक क्रान्ति –
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप नये उद्योगों का तेजी से विस्तार हुआ। वस्त्र उद्योग के लिए तकनीकी विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।
इसी समय जॉन ने वर्ष 1738 ई० में ‘फ्लाइंग शटल का आविष्कार किया जिससे कम समय में अधिक कपड़ा बुना जा सकता था।
इसी क्रम में हरग्रीव्ज ने 1764 ई० में ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिसके एक पहिए से कई तकुए घुमाये जा सकते थे।
स्पिनिंग जैनी, रिचर्ड आर्कराइट की वाटर फ्रेम, सैम्युअल क्राम्पटन का म्यूल तथा माराङ कार्टराइट का शक्तिचालित करघा आदि अनेक मशीनों का आविष्कार इसी समय हुआ था।
इन नई मशीनों के आविष्कार एवं तकनीकी विकास से उद्योगों का तेजी से विस्तार हुआ क्योंकि इन मशीनों से कम समय में सुन्दर माल का अत्यधिक मात्रा में उत्पादन होने लगा था।
निरन्तर सुधार एवं आविष्कारों की प्रक्रिया जारी रहने से आटा चक्की, रेलगाड़ी, समुद्री जहाजों का विकास हुआ।
उद्योगों के लिए कोयले एवं लोहे की आवश्यकता की पूर्ति खानों द्वारा की जाती थी, लोहे तथा कोयले की खानों में पानी भर जाता था।
हम्फ्री डेवी के सेफ्टी लैम्प तथा जेम्सवाट के भाप के इंजन का आविष्कार होने से खानों का पानी बाहर फेंकने में सुविधा होने लगी।
1784 ई० में हेनरी कार्ट ने लोहा साफ करने की विधि खोज निकाली थी जिससे लोहे की छड़े एवं इस्पात बनाने में सुविधा हो गयी।
इन सभी आविष्कारों से एक ओर औद्योगिक विकास की प्रक्रिया तेज तथा दूसरी ओर औद्योगिक क्रान्ति का उद्योगों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
कृषि और औद्योगिक क्रान्ति –
18वी शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति प्रारम्भ होने के साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी परिवर्तन होते लगे थे।
कृषि में इस समय औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप जो परिवर्तन हुए, उन्हें कृषि क्रान्ति कहा गया।
इसके पूर्व कृषि की पद्धति पुरानी थी, उसमें प्रयोग किये जाने वाले औजार और यन्त्र पुराने थे तथा कृषि उत्पादन की दशा भी अच्छी नहीं थी, औद्योगिक विकास होने से कृषि के क्षेत्र में मशीनों का प्रयोग प्रारम्भ हो गया।
आर्थर यंग ने एनाल्स आफ एग्रीकल्चर नामक पत्रिका का प्रकाशन किया जिसमें कृषि सम्बन्धी विचारों एवं अनुभवों को प्रकाशित किया जाता था।
जेथोटल ने ड्रिल का आविष्कार कर बीज बोने की पद्धति को सुगम बनाया तथा अनेक अच्छे बीज व पशुचालित यन्त्रों का आविष्कार कर कृषि के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी, इससे कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई।
इसके अतिरिक्त पशु चारे, पशुओं की नस्ल सुधारने, भूसे से फसल को अलग करने की तकनीक भी विकसित हुई जिससे कृषि के क्षेत्र में एकाएक परिवर्तन हुआ और इसे कृषि क्रान्ति का नाम दे दिया गया।
यातायात के साधन और औद्योगिक क्रान्ति –
यातायात के साधनों का विकास भी औद्योगिक क्रान्ति का ही परिणाम था। इस दिशा में रिचार्ड ट्रेविधिक द्वारा बनाया गया रेल का इंजन, जार्ज स्टीफेन्सन द्वारा निर्मित कोयला ढोने वाला इंजन एवं रेलमार्गों के आविष्कार से यातायात के साधनों का पर्याप्त विकास हुआ।
उद्योगों के लिए कच्चा माल मँगाने एवं उत्पादित माल को विभिन्न स्थानों तक भेजने में यातायात के साधनों ने औद्योगिक क्रान्ति के उद्देश्य की पूर्ति में अत्यधिक सहयोग किया।
स्पष्ट है कि औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप यातायात के क्षेत्र में तीव्रता से विकास हुआ।
(क) सड़कों का विकास –
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप यातायात के साधनों का विकास हुआ और क्रमशः अधिक सड़कों की आवश्यकता महसूस होने लगी।
इस दिशा में जान मेकएडम ने टिकाऊ सड़कों को बनाने का अनुसंधान किया तथा टेल फोर्ड ने इसे विकसित किया।
सड़कों में तारकोल का प्रयोग प्रारम्भ हो जाने से बड़े-बड़े नगरों को सड़कों द्वारा जोड़ दिया गया जिससे उद्योगों को उत्पादित माल भेजने में आसानी हो गयी।
(ख) नहरों का विकास –
यातायात के साधनों के विकास के क्रम में स्थलमार्गों के साथ ही जलमार्गों का भी उपयोग होने लगा था।
नहरों के विकास से कच्चा माल कारखानों तक पहुँचाने में विशेष सुविधा होती थी अतः नहरों को यातायात के लिए प्रयोग किया जाने लगा। इसके लिए हजारों मील लम्बी नई नहरों का विकास किया गया।
वाणिज्य और औद्योगिक क्रान्ति –
इंग्लैण्ड की औद्योगिक प्रगति एवं पूँजीपतियों की सुदृढ़ता से वाणिज्य के क्षेत्र में तीव्रगामी परिवर्तन हुए जिसे ‘वाणिज्य क्रान्ति’ कहा गया।
औद्योगिक तथा कृषि विकास के फलस्वरूप वाणिज्य के क्षेत्र में भी परिवर्तन होने लगे थे। बड़ी मशीनों से खेती करने तथा बड़े कारखानों में माल तैयार होने से इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गयी थी।
यातायात के साधनों का विकास हो जाने से माल को लाने तथा ले जाने में सुविधा हो गयी और इंग्लैण्ड विश्व का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन गया।
अनेक उपनिवेशों में साम्राज्य का विस्तार होने से इंग्लैण्ड को तैयार माल के लिए बाजार उपलब्ध हो गया और इससे वाणिज्य क्रान्ति को गति मिल गयी।
इंग्लैण्ड खाद्य सामग्री अमेरिका, कनाडा और अर्जेन्टाइना से मँगाने लगा तथा लोहा, कोयला, गंधक, चूना, वस्त्र, मशीनरी, गेहूं व जौ का निर्यात करने लगा।
इन सभी परिवर्तनों से इंग्लैण्ड के व्यापार में वृद्धि हुई तथा वह प्रमुख औद्योगिक केन्द्र बन गया।
चालक शक्ति और औद्योगिक क्रान्ति –
चालक शक्ति के क्षेत्र में भी औद्योगिक क्रान्ति ने अपने पैर पसारे, पवन शक्ति और जल शक्ति की सीमाओं को देखते हुए वैज्ञानिकों ने भाप की शक्ति का आविष्कार करके विश्व को एक नया उपहार प्रदान किया।
सबसे पहले टॉमस न्यूकॉमेन ने ‘फायर इंजन’ बनाया परन्तु मशीनों को चलाने में यह इंजन असफल रहा।
जेम्सवाट ने 1782 ई० में भाप का इंजन बनाया। भाप का इंजन औद्योगिक क्षेत्र के लिए एक प्राकृतिक वरदान सिद्ध हुआ।
वाष्पचालित इंजन मशीनों को चलाने, खानो से पानी निकालने, छपाई करने तथा रेल चलाने में सहायक होने लगा।
भाप के इंजन ने औद्योगिक क्रान्ति को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभाई। जार्ज स्टीफेन्सन ने 1814, ई० में रेल का इंजन बनाया।
1836 ई० में स्टीफेन्सन ने रॉकेट इंजन बनाया। 1808 ई० में जलयान बनाये गये बाद में 19वीं शताब्दी में पैट्रोल तथा डीजल से चलने वाले इंजन बनाये गये।
संचार के साधन और औद्योगिक क्रान्ति –
औद्योगिक क्रान्ति ने संचार व्यवस्था को भी विकसित करने में सहयोग दिया, 1835 ई० में मोर्स के द्वारा तार भेजने का सफल प्रयोग किया गया।
1857 ई० में सर्वप्रथम इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के मध्य तार की लाइनें बिछायी गयी, 1840 ई० में विश्व में सबसे पहले इंग्लैण्ड ने डाक व्यवस्था प्रारम्भ की।
1875 ई० में ग्राहमबेल ने टेलीफोन का आविष्कार करके संचार व्यवस्था में एक नई क्रान्ति ला दी।
औद्योगिक क्रान्ति के क्या प्रभाव पड़े –
औद्योगिक क्रान्ति ने यूरोप में समग्र जीवन को परिवर्तित कर दिया, सामाजिक जीवन पर इसके निम्न प्रभाव पड़े –
नगरीकरण –
औद्योगीकरण के कारण नगरों का विकास तीव्र गति से हुआ, गाँवों में कृषिकार्य को छोड़कर लोगों ने शहरों में रहना प्रारम्भ कर दिया।
नगरों में तेजी से जनसंख्या बढ़ने के कारण वहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी, नगरों में जन-सुविधाओं का अभाव हो गया तथा प्रदूषण बढ़ने लगा।
अधिक जनसंख्या की वृद्धि के कारण समाज में जुआ, शराब, हिंसा तथा शोषण का प्रभाव बढ़ गया तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों का ह्रास होने लगा।
नये वर्गों की उत्पत्ति एवं संघर्ष –
औद्योगिक क्रान्ति के कारण समाज श्रमिक एवं पूँजीपति दो वर्गों में बँट गया। इन दोनों वर्गों में संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
हड़ताल तथा तालाबन्दी इसी वर्ग संघर्ष के परिणाम हैं, पूँजीपतियों के शोषण के कारण श्रमिकों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी तथा पूँजीपतियों और श्रमिकों में टकराव आवश्यक हो गया।
श्रमिकों की दयनीय दशा –
पूँजीवाद के उदय के साथ ही श्रमिकों का शोषण प्रारम्भ हो गया, श्रमिकों से कम मजदूरी पर 18 घण्टे तक काम लिया जाने लगा।
श्रमिकों के आवास, शिक्षा और मनोरंजन की समुचित व्यवस्था नहीं की गयी।
इस प्रकार औद्योगिक क्रान्ति ने सामाजिक वर्ग-भेद की खाई को और भी चौड़ा कर दिया।
स्त्रियों और बच्चों का शोषण –
अधिक उत्पादन करके लाभ अर्जित करने की धुन में उद्योगपतियों ने स्त्रियों और बच्चों को काम पर लगा लिया।
स्त्रियों और बच्चों से अधिक घण्टे काम लेकर पुरुषों की अपेक्षा कम वेतन दिया जाता था।
स्त्रियों और बच्चों का शोषण देखकर अनेक सरकारों ने उद्योगों में स्त्रियों और बच्चों के काम पर रोक लगा दी।
नैतिक मूल्यों का पतन –
औद्योगीकरण के कारण पैसा ही सब कुछ बन गया, जिससे लोगों के नैतिक मूल्यों में कमी आ गयी।
अतः शराब, जुआ, व्यभिचार आदि नागरिकों की दिनचर्या के अंग बन गये और नैतिक मूल्यों के ह्रास से समाज में विघटन प्रारम्भ हो गया ।
आर्थिक जीवन पर प्रभाव –
औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक जीवन पर निम्न प्रभाव पड़े-
पूँजीवाद का उदय –
औद्योगिक क्रान्ति के कारण उत्पादन बढ़ा उत्पादन बढ़ने से उद्योगपतियों की आय में वृद्धि हुई। एक ही स्थान पर पूँजी एकत्रित होने से पूँजीपति वर्ग विकसित हुआ जिसने पूँजीवाद को जन्म दिया। पूँजीपति श्रमिकों का शोषण करने लगे जिसमे उनमें श्रमिकों में असन्तोष फैल गया।
परिवहन के साधनों का विकास –
औद्योगिक क्रान्ति ने रेल, सड़क आदि परिवहन के साधनों का विकास किया, परिवहन के साधनों ने उद्योग तथा वाणित्य का बहुत विस्तार किया।
कृषि का विकास –
औद्योगिक क्रान्ति के कारण कृषि के नये-नये यन्त्र, खाद तथा बीज खोजे गये, कृषि की नयी तकनीक तथा उत्पादन विधियों की खोज होने से कृषि में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए।
उत्पादन में वृद्धि –
औद्योगिक क्रान्ति ने बड़े पैमाने के उद्योगों को बढ़ावा दिया जिससे उत्पादन की मात्रा में आश्चर्यजनक वृद्धि हो गयी।
जीवन स्तर में वृद्धि –
उत्पादन बढ़ने से श्रमिको को आजीविका के नये स्रोत मिले जिससे उनकी आय में वृद्धि हो गयी। आय बढ़ने से श्रमिकों के जीवन स्तर में बहुत सुधार हो गया, इस प्रकार जन-कल्याण में भारी वृद्धि हो गयी।
आर्थिक एवं नैतिक जीवन-स्तर पर प्रभाव –
औद्योगिक क्रान्ति ने धार्मिक एवं नैतिक जीवन को निम्नवत् प्रभावित किया-
1. औद्योगिक क्रान्ति ने नैतिकता के क्षेत्र में प्रगति की तथा इस काल में धार्मिक सहिष्णुता बढ़ गयी।
2. धन बढ़ने से लोगों में जुआ, शराब आदि दोष उत्पन्न हो गये तथा उनका नैतिक आचरण बिगड़ गया।
3. मशीनों से काम लिए जाने से बेकारी बढ़ी जिसने अनेक अनैतिक कार्यों को जन्म दे डाला।
4. समाज में असन्तोष बढ़ने लगा तथा लोगों का चारित्रिक पतन होना प्रारम्भ हो गया।
5. औद्योगीकरण का एक प्रमुख परिणाम जनसंख्या वृद्धि भी था, बढ़ी हुई जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया।
वाणिज्य व्यवस्था पर प्रभाव –
औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप वाणिज्य के क्षेत्र में निम्नांकित प्रभाव हुए-
1. औद्योगिक क्रान्ति से बड़े पूँजीपतियों ने विभिन्न स्थानो पर बन्दरगाह एवं व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की।
2. बड़े पैमाने पर उत्पादन बढ़ने से सस्ती दर पर कच्चा माल मंगवाया गया तथा उत्पादित माल अधिक मूल्य पर बेचा गया जिससे व्यापार में वृद्धि हुई।
3. उपनिवशों की स्थापना होने से व्यापार के लिए बाजार सुलभ हो गया जिससे व्यापारिक विकास में प्रगति हुई ।
4. बड़े नगरों के विकास एवं व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना में सहायता मिली। ये नगर उद्योग तथा वाणिज्य के प्रसिद्ध केन्द्र बन गये।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना –
औद्योगिक क्रान्ति के बाद संसार के विकसित देश दूसरे अविकसित देशों पर अधिकार जमाकर अपने व्यापार को बढ़ाने का प्रयास करने लगे थे।
भारत की प्राकृतिक खनिज संपदा एवं सम्पन्नता ने यूरोप के अनेक देशों को अपनी ओर आकर्षित किया।
1600 ई० में अंग्रेजों ने भारत में ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ की स्थापना इसी प्रकार के व्यापारिक कार्य के लिए की थी।
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में अपने पाँव जमाने के बाद यहाँ की राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया और भ्रष्टाचार व आपसी फूट का लाभ उठाकर लगभग 200 वर्षों तक भारत पर राज्य किया।
ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना से पूर्व भारत के कुटीर उद्योग विकसित अवस्था में थे। भारत के बने रेशमी वस्त्र तथा ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध थी।
भारत की सम्पन्नता से आकर्षित होकर यूरोपीय देशों में भारत पर साम्राज्य स्थापित करने की होड़ लग गयी और पुर्तगाली डच, फ्रेंच एवं अंग्रेजी कम्पनियाँ व्यापार के लिए भारत में प्रयास करने लगी।
इस क्रम में अंग्रेजों ने सर्वप्रथम भारत में व्यापार करने की योजना बनाई और फिर धीरे-धीरे राज्य विस्तार करना प्रारम्भ कर दिया।
अंग्रेजों ने भारत की सम्पन्नता का पूरा लाभ उठाकर यहाँ के राज्यों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
अंग्रेजो ने यहाँ से कच्चा माल इंग्लैण्ड भेजा और अपने यहाँ तैयार किये गये माल को भारत के बाजारों में अधिक लाभ लेकर बेचना प्रारम्भ कर दिया।
यहाँ के कुटीर उद्योग इन बड़े पैमाने पर उत्पादित कारखानों के माल की गुणवत्ता एवं मूल्य की प्रतिस्पर्धा में नहीं टिक सके।
अतः भारतीय कुटीर उद्योगों में तैयार होने वाले माल की बिक्री खत्म होने लगी और उनका पतन हो गया।
कुटीर उद्योगों का पतन होने से देश की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
अंग्रेजों ने भारत की आपसी फूट एवं भ्रष्टाचार का भी लाभ उठाया, अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति अपनाकर भारतीय राज्यों पर अधिकार जमा लिया, और इस प्रकार भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना हो गयी।
भारत की औद्योगिक क्रान्ति –
ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के बाद भारत में होने वाले राजनैतिक एवं सैनिक परिवर्तनों से अंग्रेजी शासकों को यहाँ क्रान्ति होने का भय रहता था।
इसी उद्देश्य से कि क्रान्ति होने पर उसे सुगमता से दबाया जा सके, लार्ड डलहौजी ने देश में यातायात की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए रेलगाड़ी चलायी तथा बाद में तार एवं डाक की व्यवस्था प्रारम्भ की।
1857 ई० की क्रान्ति को दबाने में अंग्रेजों को यातायात एवं संचार के इन साधनों का लाभ तो हुआ, साथ ही इससे देश के औद्योगीकरण को भी नई दिशा मिल गयी।
देश में अनेक मिलों की स्थापना होने लगी, 1876 ई० में कानपुर की वुलन मिल स्थापित हुई और धीरे-धीरे सूती वस्त्र उद्योग मुम्बई, अहमदाबाद, सूरत, शोलापुर, नागपुर आदि स्थानों पर भी फैल गया।
बेकारी की समस्या को हल करने एवं क्रान्ति का दमन करने के उद्देश्य से उद्योगों के विकास की ओर ध्यान दिया गया, लेकिन उसका वास्तविक लाभ बिटिश सरकार ने ही -उठाया और भारतवासियों की आर्थिक स्थिति नहीं सुधर सकी।
धीरे-धीरे देश में रेलों का विकास होने से अनेक उद्योगों का विकास होता गया जिनमें वस्त्र उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, लोहा व इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, जूट उद्योग आदि प्रमुख थे।
भारतीय औद्योगीकरण के कारण –
भारत में उद्योगों के विस्तार एवं विकास की पर्याप्त सम्भावना थी, इसीलिए ब्रिटिश एवं अन्य देशों की निगाह भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए लगी हुई थी।
ब्रिटेन ने भारत में निम्नलिखित कारक औद्योगीकरण के लिए उपयुक्त पाये-
(i) भारत में कोयले एवं लोहे के पर्याप्त भण्डार थे जो औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक थे।
(ii) परिवहन के साधन पर्याप्त एवं सुलभ थे।
(iii) कृषि-प्रधान देश होने के कारण यहाँ अनेक उद्योगों, जैसे वस्त्र तथा चीनी आदि के लिए कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था।
(iv) देश में सदैव बहने वाली नदियाँ थीं जिनसे विद्युत उत्पादन की पर्याप्त सम्भावना थी।
(v) भारत में अधिक जनसंख्या होने के कारण सस्ते श्रमिक उपलब्ध थे।
(vi) भारत में निर्मित माल एशिया, अफ्रीका आदि देशों में आसानी से बिक (Sell) जाता था।
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Summary –
इसमें कोई शक नहीं कि इंसानों ने आज जो भी तरक्की की है वह धीरे-धीरे समय के साथ विकसित हुई, लेकिन कभी-कभी ऐसा दौर भी आता है जब बदलाव एक निश्चित गति के बजाय कुछ ही समय में हो जाता है।
ऐसे बदलाव आमतौर पर हमारे लिए बहुत अच्छे परिणाम लेकर आए है, उम्मीद है कि आने वाले समय में भी हम ऐसे ही विकास के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करेंगे।
तो दोस्तों, औद्योगिक क्रांति क्या है इसके बारे में यह लेख आपको कैसा लगा, हमें जरूर बताएं और यदि आपके पास इस विषय से जुड़े कोई भी सवाल या सुझाव है तो उसे भी लिख भेजें, इस लेख को अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें, धन्यवाद 🙂