BJP Ka Itihas | बीजेपी का इतिहास | बीजेपी स्थापना दिवस | बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष लिस्ट | BJP Full Form | BJP Founder | BJP Ka Gathan Kab Hua
कहते है कि अगर अपने विश्वास को कायम रखा जाए और उसपर अपना शत-प्रतिशत दिया जाए तो, हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते है, यह लाइन हर चीज पर लागू होती है, चाहे वह कोई व्यक्ति हो या संगठन, जब सभी एक दिशा में एक उद्देश्य के लिए काम करते है तो उसके परिणाम साकारात्मक होते है और “भारतीय जनता पार्टी” की सफलता को देखकर हम यह सीख सकते है।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, भारतीय जनता पार्टी के बारे में… बीजेपी का इतिहास, पार्टी के राजनैतिक सफर और इसके उतार-चढ़ाव के बारे में भी बात करेंगे, उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।
BJP Ka Itihas बीजेपी का इतिहास –

बीजेपी प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों में से एक है, पार्टी, भारत के 14वें प्रधानमंत्री “श्री नरेंद्र मोदी” जी के नेतृत्व में वर्ष 2014 से वर्तमान तक केंद्र में और अलग-अलग राज्यों में अपनी सरकार बनाने में सफल रही है।
बीजेपी का फुलफॉर्म “भारतीय जनता पार्टी” (Bharatiya Janata Party) और संक्षिप्त रूप में, भा0ज0पा0 (B.J.P.) होता है।
भारतीय जनता पार्टी के, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ घनिष्ठ वैचारिक और संगठनात्मक संबंध हैं।
अगस्त 2023 तक, यह भारतीय संसद के साथ-साथ विभिन्न राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामले में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने के साथ विश्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जानी जाती है।
भारतीय जनता पार्टी के आज 18 करोड़ से ज्यादा सदस्य है, वर्ष 2015 में बीजेपी ने पार्टी के सदस्यों की संख्या के मामले में चीन की कम्युनिष्ट पार्टी को पीछे छोड़ते हुए, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
आज की स्थिति में देखें तो बीजेपी के सदस्यों की यह संख्या कम्युनिष्ट पार्टी के सदस्यों की संख्या से दुगुनी है।
स्थापना | 1959 जनसंघ के रूप में |
पुनर्गठन | 6 अप्रैल 1980 (बीजेपी) |
मुख्यालय | 6A, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली – 110002 |
प्रकाशन | कमल संदेश |
चुनाव चिन्ह | कमल का फूल |
रंग | भगवा |
दल अध्यक्ष | जगत प्रकाश नड्डा |
महासचिव | बी.एल.संतोष, कैलाश विजयवर्गीय |
संसदीय_दल_अध्यक्ष | नरेन्द्र मोदी |
नेता लोकसभा | नरेन्द्र मोदी (प्रधानमन्त्री) |
नेता राज्यसभा | पीयूष गोयल |
गठबंधन | राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) / National Democratic Alliance (NDA) |
विचारधारा | रूढ़िवाद, हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, आर्थिक उदारीकरण, एकात्म मानववाद |
महिला शाखा | भाजपा महिला मोर्चा |
युवा शाखा | भारतीय जनता युवा मोर्चा |
किसान शाखा | भाजपा किसान मोर्चा |
वेबसाईट | https://bjp.org |
भारतीय जनसंघ –
21 अक्टूबर 1956 को डॉ “श्यामा प्रसाद मुखर्जी” ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सहायता से भारतीय जन संघ की नींव रखी।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी इससे पहले भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे, इसके साथ ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रथम कैबिनेट में “इंडस्ट्री और सप्लाइ मंत्री” नियुक्त किए गए थे।
लेकिन 1950 में हुए नेहरू लियाकत पैकट के विरोध में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, ठीक इसके बाद वे “भारतीय जन संघ” के संस्थापक और पहले अध्यक्ष बने।
उस समय इस नवोदित पार्टी का उद्देश्य था, हिंदुओं की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के साथ-साथ कॉंग्रेस और मुख्य रूप से जवाहरलाल नेहरू की “निजी मुस्लिम बंटवारा नीति” (Private Muslim Apportionment Policy) का विरोध करना था।
साथ ही जनसंघ की मांग थी की जम्मू और कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलय कर लिया जाए लेकिन उस दौर में काँग्रेस का पूरे भारत पर एकछत्र रूप से राज था जिसके चलते 1951-52 में हुए हुए स्वतंत्र भारत के पहले आम चुनाव में ये जनसंघ ने केवल तीन सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही थी।
इसके बाद ये पार्टी खुद को मजबूत कर ही रही थी कि 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आकस्मिक निधन से इसे गहरा झटका लगा।
लेकिन इसके कुछ ही समय बाद उस समय ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ का एक जाना माना चेहरा रहे रहे “पंडित दीनदयाल उपध्याय” ने जनसंघ को एक नई दिशा दी साथ ही 1967 तक जनसंघ के जनरल सेक्रेटरी रहे और पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया।
केवल यही नहीं… कहा जाता है कि वो दिन दयाल उपध्याय ही थे जो भविष्य में जन्म लेने वाली भारतीय जनता पार्टी की एक तरह से वैचारिक नींव रखी।
इसी बीच 1967 के आम चुनाव में जनसंघ ने 35 सीट जीती जिससे यह लोकसभा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उस समय जनसंघ ने हिन्दी बोलने वाले प्रांतों की, बिना कॉंग्रेस के सहयोग वाली अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर संयुक्त विधायक दल का भी गठन किया।
क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर जनसंघ ने मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में गठबंधन वाली सरकार बनाई, ये पहला मौका था जब जनसंघ किसी राजनैतिक कार्यालय में स्थापित हुआ था।
इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे युवा नेता ने भी जनसंघ में अपनी जगह बना चुके थे।
पंडित दीनदयाल उपध्याय के बाद, जनसंघ की बागडोर, अटल बिहारी वाजपेई जी ने संभाली, इस दौरान ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ का गठन, गौ हत्या पर प्रतिबंध और जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा को खत्म करना ही पार्टी ने अपने मुख्य एजेंडे में शामिल किया।
इसी दिशा में जनसंघ अपनी राजनैतिक पकड़ मजबूत कर ही रहा था कि 1975 में प्रधानमंत्री “श्रीमती इंदिरा गांधी” जी ने देश में इमरजेंसी लगा दी, जिसके विरोध में जनसंघ ने अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर आंदोलन का मोर्चा खोल दिया।
इमरजेंसी के विरोध में हुए राष्ट्र व्यापी आंदोलन के चलते, जनसंघ के हजारों कार्यकर्ताओं को सरकार ने जेल में डाल दिया।
जनता पार्टी –
लेकिन जब वर्ष 1977 में इमरजेंसी को हटाया गया और पुनः आम चुनाव हुए तो जनसंघ ने उस समय की विपक्षी पार्टियों, सोशलिस्ट पार्टी, कांग्रेस (O) और भारतीय लोक दल के साथ मिलकर “जनता पार्टी” को जन्म दिया।
परिस्थितियों की वजह से एकजुट होकर बनी इस विलक्षण पार्टी का सिर्फ एक ही उद्देश्य था… इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को हराकर सत्ता से बेदखल करना, और जब इस चुनाव के नतीजे आए तो वो हो गया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
देश में पहली बार जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई, जनता पार्टी में सबसे बड़ा शेयर जनसंघ का, 1977 के इस चुनाव में जनसंघ को 93 सीटें मिली थी।
इस नई सरकार में “मोरारजी देसाई” के रूप में देश को अगला प्रधानमंत्री मिला और अटल बिहारी वाजपेई, ‘विदेश मंत्री’ बने।
उस समय तात्कालिक परिस्थितियों से यह गठबंधन सरकार बन तो गई लेकिन घटक दलों के बीच आपसी सामंजस्य की कमी थी।
अलग-अलग पार्टियों की विचारधारा अलग-अलग थी जिसके चलते एक घटक पार्टी ने आरएसएस समर्थित जनसंघ के सदस्यों से दोहरी सदस्यता को खत्म करने की मांग की, उनकी इस मांग को जनसंघ के सदस्यों ने मानने से इनकार दिया।
इसके चलते जनता पार्टी का एक हिस्सा, जनता पार्टी (सेक्युलर) के नाम से इस् सरकार से अलग हो गया, जिसका कारण यह हुआ कि मोरारजी देसाई (प्रधानमंत्री) की यह सरकार गिर गई।
इसके बाद 1980 में फिर से आम चुनाव हुए और इस चुनाव में जनता पार्टी मात्र 31 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई।
इसके बाद अप्रैल 1980 में इस हर पर विचार विमर्श करने के लिए बुलाई गई मीटिंग में यह फैसला किया गया कि पार्टी के सभी सदस्यों को अपनी दोहरी सदस्यता छोड़नी पड़ेगी, इशारा साफ था कि बात किसकी की जा रही है।
अब जनसंघ के सदस्यों के पास दो ही ऑप्शन थे, या तो वे जनता पार्टी को चुनें या फिर आरएसएस को।
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भारतीय जनता पार्टी –
ये वो समय था जब आज की बीजेपी का युग शुरू होने वाला था, क्योंकि इस बैठक में किए गए फैसले के प्रत्युत्तर में जनता पार्टी के सदस्यों ने जनसंघ की सदस्यता छोड़ने का फैसला किया।
और इस तरह जनता पार्टी से अलग होकर पूर्व में मुख्य रूप से जनसंघ का पार्ट रहे आरएसएस से जुड़े हुए मेंबर्स ने मिलकर 6th अप्रैल 1980 को “भारतीय जनता पार्टी” की स्थापना की।
आने वाले समय में यह पार्टी भारतीय राजनीति का केंद्र बनने वाली थी, हालांकि बीजेपी एक नई पार्टी थी लेकिन इसमें जनसंघ की पुरानी व्यवस्था की झलक साफ देखने को मिलती थी।
यही कारण है कि बीजेपी के पहले अध्यक्ष भी उस समय जनसंघ के का प्रमुख रहे अटल बिहारी वाजपेई जी थे।
अपनी शुरुआती दिनों में बीजेपी को अपनी जमीन तलाशने में बहुत सी दिक्कतें आई, इसका एक बड़ा कारण ये भी था, कि जनसंघ से अलग पहचान बनाने के लिए बीजेपी को अपनी विचारधारा को लेकर हदतक कन्फ्यूज थी।
यही कारण था कि वो जनसंघ की हिन्दुत्व वाली इमेज से अलग हटकर खुद को जनता पार्टी का एक अहम घटक दल और गांधी वादी सोशलिज्म की मॉडरेट विचारधारा से जोड़ने की कोशिश कर रही थी।
बीजेपी की इस कन्फ्यूज्ड विचारधारा और इंदिरा गांधी की हत्या के कारण जनता में जगी सहानुभूति की लहर ने 1984 के आम चुनाव में बीजेपी केवल 2 सीट और टोटल वोट का महज 7% ही जीत पाई।
इस हार से सीख लेते हुए बीजेपी ने अपने कार्यप्रणाली में बदलाव किया और लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी के अध्यक्ष के रूप में (1984) नियुक्त किया गया, अब पार्टी ने फिर से आरएसएस और जनसंघ के पुराने विचारधारा के साथ आगे बढ़ने लगी।
1990 के शुरुआत में ‘विश्व हिन्दू परिषद’ ने बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन शुरू किया था, हिन्दू आस्था से जुड़े इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी ने भी आडवाणी जी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव रखनी शुरू कर दी थी।
विश्व हिन्दू परिषद के इस आंदोलन में पूर्ण सहयोग की बात करते हुए बीजेपी ने इसे अपने चुनावी मेनीफेस्टो का भी हिस्सा बना लिया था।
एक तरह से यही यह मुद्दा था जिसने बीजेपी के अंदर नए प्राण फूँक दिए, इस मुद्दे को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन की वजह से ही लोगों के अंदर पार्टी को लेकर सपोर्ट बढ़ने लगा।
इसका परिणाम 1989 के आम चुनावों में देखने को मिला, इस चुनाव में बीजेपी ने 86 लोकसभा सीटें जीती थी, इसके बाद से ही बीजेपी हमेशा भारतीय राजनीति के केंद्र पर बनी रही।
1990 का दशक आते-आते देश का बच्चा-बच्चा लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेई का नाम जानने लगा था।
इसी बीच आडवाणी जी ने 1990 में रामन्दिर निर्माण के लिए लोगों के समर्थन हेतु, सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की और इस रथयात्रा के साथ ही भारतीय राजनीति केसरिया रंग से रंग गई।
इस पूरी रथ यात्रा के दौरान आडवाणी जी सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण और छद्म धर्मनिरपेक्षता जैसे आरोप लगाए, साथ ही वो इस रथ यात्रा और पार्टी के लिए जनता जनता से सहयोग की अपील भी करते रहे।

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इस यात्रा के चलते बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने Preventive Detention में डाले जाने के ऑर्डर रिलीज कर दिए।
लेकिन इसके बाद भी हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुँचने लगे, उस समय उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री, मुलायम सिंह यादव ने हजारों कारसेवकों को हिरासत में लेने के आदेश जारी कर दिए।
इसके बावजूद भी बड़ी मात्रा में कारसेवक अयोध्या पहुँच गए, अयोध्या में पैरामिलिट्री फोर्स लगानी पड़ी, इसी बीच सुरक्षा जवानों और कारसेवकों के बीच झड़प में बहुत से कारसेवकों को अपनी जान गंवानी पड़ी, इस घटना के बाद बहुत से जगहों पर दंगे शुरू हो गए।
इसी बीच बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से अपना सहयोग वापस ले लिया जिसके परिणाम स्वरूप फिर से आम चुनाव हुए और इस बार बीजेपी ने 120 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की, साथ ही उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार बनी।
6 दिसंबर 1992 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके समर्थित दलों ने एक रैली आयोजित की जिसमें, विश्व हिन्दू परिषद और बीजेपी के एक लाख से ज्यादा कार्यकर्ता शामिल हुए।
ये रैली अयोध्या के उसी विवादित राम जन्मभूमि के पास ही हो रही थी, लेकिन उसी दिन संदिग्ध परिस्थितियों में ये रैली उग्र हो गई और लाखों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद पर हमला करके ध्वस्त कर दिया, इसके कारण पूरे देश में जगह-जगह दंगे हुए।
बीजेपी ने राम जन्मभूमि को लेकर इस रथयात्रा के अलावा एक और रथ यात्रा 11 दिसंबर 1991 में की थी, जिसे “एकता यात्रा” नाम दिया गया।
11 दिसंबर 1991 को कन्याकुमारी से शुरू होकर 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लालचौक तक यह यात्रा तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष ‘मुरली मनोहर जोशी’ के नेतृत्व में की गई, इस एकता यात्रा के अंत में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया गया।

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बीजेपी की इन दोनों यात्राओं में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री “श्री नरेंद्र मोदी” जी ने एक अहम किरदार निभाया था।
1990 का दशक आते-आते कांग्रेस अब पहले वाली कांग्रेस नहीं रह गई थी, इसे चुनौती देने के लिए बहुत से क्षेत्रीय दल एकजुट हो रहे थे।
लेकिन इनमे से कोई भी अकेले लड़ पाने में सक्षम नहीं था, ऐसे में बीजेपी जो अब तक भारत की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी।
अगले दो दशकों तक बीजेपी ने इन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) का निर्माण किया।
इसके बाद 1999 से 2004 तक बीजेपी की केंद्र में सरकार बनी रही, इसके बाद अगले दो आम चुनावों में बीजेपी सत्ता से दूर रही।
2014 की जीत –
यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में, सरकार के ऊपर भ्रष्टाचार के कई सारे आरोप लगे, साथ ही जनता महंगाई भी तेजी से बढ़ रही थी।
ऐसे में बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में श्री नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री उमीदवार के रूप में जनता के सामने रखा।
मोदी जी की लोकप्रियता और जनता के बदले मूड की वजह से इस बार बीजेपी ने इस बार 282 सीटें (336 सीट एनडीए) जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया और “श्री नरेंद्र मोदी” के रूप में हमें नये प्रधानमंत्री मिले।

पहले पहले जहां बीजेपी को सरकार बनाने के लिए एनडीए का सहारा लेना पड़ता था अब केवल अपने दम पर बहुमत हासिल करने लगी थी।
इसके बाद फिर 2019 के आम चुनावों में बीजेपी ने अपना पिछला रिकार्ड तोड़ते हुए 303 सीटों पर अपनी एतिहासिक जीत दर्ज की, तब से लेकर अभी तक “श्री नरेंद्र मोदी” जी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे है।
अब अगले आम चुनाव 2024 में होने वाले है।
भारतीय राजनीति में BJP का योगदान –
कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय, राष्ट्रीय अखण्डता, कबाइली वेश में पाकिस्तानी आक्रमण के प्रतिकार, परमिट व्यवस्था एवं धारा 370 की समाप्ति।
सत्याग्रह एवं बलिदान, गोवा मुक्ति आंदोलन, बहुत दबाव के बाद ही सरकार ने सैनिक कार्यवाही की।
बेरुबाड़ी एवं कच्छ समझौते हमारी राष्ट्रीय अखण्डता के लिए चुनौती थे, भाजपा ने इस चुनौती का सामना किया और आज भी देश में राष्ट्रीय अखण्डता के मुद्दे उठाना अलगाववाद से जूझना और समाज को निरन्तर जाग्रत रखने के कार्य में बीजेपी अपना कार्य कर रही है।
भारत देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न कर भारत पर हमलों की कोशिश करने वालों को अटलजी की सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया।
पार्टी की विचारधारा –
पार्टी के अनुसार.. राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं है, समाज को अपेक्षित दिशा में प्रगति पथ पर ले जाना भी उसका कार्य है, इसके लिये संगत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
बीजेपी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्म मानववाद तथा पंचनिष्ठाओं की संगत विचारधाराओं के आधार पर संगठन का नियमन कर रही है और शासन की नीति में भी इनका समुचित प्रतिबिंब दिखाई देता है।
बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष लिस्ट –
अध्यक्ष | कार्यकाल |
अटल बिहारी वाजपेयी | 1980-86 |
लालकृष्ण आडवाणी | 1986-91 |
मुरली मनोहर जोशी | 1991-93 |
लालकृष्ण आडवाणी | 1993-98 |
कुशाभाऊ ठाकरे | 1998-2000 |
बंगारू लक्ष्मण | 2000-01 |
जन कृष्णमूर्ति | 2001-02 |
वेंकैया नायडू | 2002-04 |
लालकृष्ण आडवाणी | 2004-06 |
राजनाथ सिंह | 2006-09 |
नितिन गडकरी | 2009-13 |
राजनाथ सिंह | 2013-14 |
अमित शाह | 2014-20 |
जगत प्रकाश नड्डा | 2020-वर्तमान |
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Disclaimer –
यह आर्टिकल इंटरनेट पर मौजूद सूचनाओं के आधार पर लिखा गया है, इसे लिखते समय पूर्ण सावधानी रखी गई है, फिर भी किसी मानवीय भूल से इनकार नहीं किया जा सकता, किसी भी प्रकार की त्रुटि पाए जाने पर कृपया हमें कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताएं हम यथाशीघ्र इसे ठीक करने की कोशिश करेंगे।
Summary –
अगर इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो बीजेपी ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की है, इसका श्रेय लीडर्स के साथ हर उस कार्यकर्ता को भी जाता है जिसने इकाई स्तर पर इसे मजबूत बनाया है।
तो दोस्तों, बीजेपी के इतिहास के बारे में यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से यदि आपके पास कोई सवाल या सुझाव है तो उसे भी जरूर लिखें, धन्यवाद 🙂
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