Black Box Kya Hota Hai【ब्लैक बॉक्स क्या होता है】पूरी जानकारी

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हवाई यातायात पिछले कुछ दशकों से लेकर आज भी कहीं आने जाने का सबसे तेज साधन रहा है।

अब क्योंकि हवाई जहाज इतनी तेजी से उड़ान भरते है, और इसमें जरा सी भी गलती हवाई जहाज में बैठे यात्रीयों के बहुत बड़ा खतरा लेकर आती है, इसलिए इसमें एडवांस टेक्नॉलजी का उपयोग होता है।

यदि कभी भी दुर्भाग्यवश या अप्रत्याशित परिस्थितियों में दुर्घटना हो जाती है तो ऐसी ही एक टेक्नॉलजी है, जिसकी मदद से दुर्घटना के कारणों का पता लगाया जा सकता है, और उसका नाम है “ब्लैक बॉक्स”।

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, ब्लैक बॉक्स के बारे में… ब्लैक बॉक्स क्या होता है? ब्लैक बॉक्स कि जरूरत क्यों पड़ी और इससे जुड़ी कुछ अन्य जानकारियों के बारे में उम्मीद करता हूँ आपको यह पसंद आएगा।

Black Box Kya Hota Hai? –

black box kya hota hai
Black Box Kya Hota Hai | ब्लैक बॉक्स क्या होता है?

“ब्लैक बॉक्स” या “उड़ान अभिलेखक” नारंगी रंग का एक बॉक्स होता है, जिसका मुख्य कार्य विमान में हो रही गतिविधियों को रिकार्ड करने का होता है।

ब्लैक बॉक्स (Black Box) के अलावा अंग्रेजी में इसे फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (Flight Data Recorder) या फ़्लाइट रिकॉर्डर (Flight Recorder) भी कहा जाता है।

उड़ान अभिलेखक के अंदर, विमान में पायलट, क्रू मेम्बर और एयर ट्राफिक कंट्रोल के बीच होने वाली बातचीत इसमें रिकार्ड होती रहती है।

इसके नारंगी होने की वजह से इसे पहचानना आसान होता है और दुर्घटना स्थल पर विमान के मलबे में से इसे खोजने में आसानी होती है।

ये काफी मजबूत मैटेरियल का बना होता है, जो आसानी से जलता या टूटता नहीं है।

यह इतना मजबूत होता है कि 270 नॉट्स तक के तेज झटके और 1 घंटे तक 1100 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी झेल सकता है।

इतनी विपरीत परिस्थितियों तथा उच्च दबाव और ताप के बावजूद उसमें मौजूद जानकारी सुरक्षित रहती है, यह समुंद्र में 14000 फीट तक गिरने के बावजूद भी सिग्नल भेजता रहता हैं।

ब्लैक बॉक्स अंदर से पूरी तरह तापमान रोधी होता है, इससे एक खास तरह की तरंगें निकलती रहती है, लगातार 30 दिनों तक निकलने वाले इन तरंगों के कारण दुर्घटना के बाद डिटेक्टर की मदद से इसे ढूँढने में मदद मिलती है।

जब भी विमान में कोई दुर्घटना होती है तो उससे कुछ समय पहले की सारी जानकारी जो कि विमान के अंदर और एयर ट्रैफिक कंट्रोल के बीच होती है, वो सारी ऑडियो के रूप में सेव हो जाती है।

बाद में इस डाटा की मदद से दुर्घटना के कारणों को पहचानने और एक निश्चित अनुमान तक पहुँचने में मदद मिलती है, इसके इन्हीं फ़ायदों की वजह से इसे हर विमान के अंदर लगाया जाता है।

ब्लैक बॉक्स के प्रकार –

ब्लैक बॉक्स मुख्यतः दो प्रकार के होते है, जिसमें पहला है फ्लाइट डाटा रीकॉर्डर और दूसरा होता है कॉकपिट वॉयस रीकॉर्डर।

फ्लाइट डाटा रीकॉर्डर –

फ्लाइट डाटा रीकॉर्डर का मुख्य काम प्लेन के अंदर की सारी गतिविधियों जैसे – विमान की गति (Speed), ऊँचाई ( Altitude), ईंधन (Fuel), केबिन या कॉकपिट के तापमान ( Temperature) के बारे में जानकारी जैसी सारी गतिविधियां रिकार्ड होती है।

कॉकपिट वॉयस रीकॉर्डर –

और इसमें दूसरा होता कॉकपिट वॉयस रीकॉर्डर जो कि फ्लाइट के अंदर हो रही कम्यूनिकेशन को रिकार्ड करता है।

ये दोनों तरह के ब्लैक बॉक्स मिलकर लगभग 88 तरह के डाटा को रिकार्ड करने का काम करते है।

ब्लैक बॉक्स, प्लेन या हेलिकाप्टर के पिछले हिस्से में लगाए जाते है क्योंकि प्लेन या हेलिकाप्टर का ये वो हिस्सा है जो किसी भी तरह के दुर्घटना में सबसे ज्यादा सर्वाइव कर सकता है।

और क्योंकि ब्लैक बॉक्स इस तरह के मैटेरियल का बना होता है कि आसानी से टूटता या जलता नहीं है तो इसके सुरक्षित मिलने के बहुत ज्यादा चांस रहते है।

ब्लैक बॉक्स का नाम कैसे पड़ा –

ब्लैक बॉक्स का कलर वैसे तो नारंगी होता है, लेकिन इसे ब्लैक क्यों कहा जाता है?

इस बॉक्स के अंदर कुछ इलेक्ट्रॉनिक चिप और सर्किट लगी होती है, इसके अलावा इसके अंदर काले रंग का ठोस मैटेरियल भर होता है, जो इसको किसी भी तरह के बाहरी अटैक से बचाता है।

ब्लैक बॉक्स का शुरुआती वर्जन फिल्म आधारित टेक्नॉलजी पर कम करता था, अब क्योंकि फिल्म (photographic फिल्म जो कैमरों में यूज होती थी।) को काम करने के लिए गहरे अंधेरे की जरूरत होती है।

इसके लिए इसकी अंदर की दीवारों को काला रखा जाता था, इसके अंदर मौजूद काले रंग के मैटेरियल के कारण ही इसे ब्लैक बॉक्स नाम दिया गया, शुरुआत में इसका रंग, ऑरेंज की जगह लाल होने के कारण इसे “Red Egg” के नाम से जाना था।

जैसा कि हमने पहले भी बात की है इसका नारंगी रंग इसे दूर से ही दिखाई देने में मदद करता है।

Black Box Kya Hota Hai
वर्तमान में प्रयोग होने वाले ब्लैक बॉक्स की आंतरिक संरचना | Source – DW.com

ब्लैक बॉक्स के आविष्कारक –

कहते है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, ब्लैक बॉक्स का आविष्कार भी किन्हीं आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हुआ।

साल 1950 के दशक में समय विमानों के हादसे काफी अधिक बढ़ते जा रहे थे और उनके क्रैश होने का कारण नहीं पता चल पा रहा था की आखिर किस वजह से विमान क्रैश हो रहे है।

क्योंकि दुर्घटना के बाद विमान के मलबे में से ये खोज पाना बहुत मुश्किल होता है, कि आखिर दुर्घटना किस वजह से हुई है?

और उस समय दिन-प्रतिदिन विमान के दुर्घटनाओं की वृद्धि को देखते हुए एयरोनॉटिकल एक्सपर्ट्स ने विमान में एक ऐसे उपकरण को लगाने के बारे में विचार किया।

जो विमान हादसा हो जाने के बाद किसी की जान ना बचा पाने के बावजूद भी बहुत हद तक घटनाओं के बारे में पता लगाने में मदद कर सके ताकि उन कमियों को सुधारकर भविष्य में होने वाले हादसों से बचा जा सके।

इसके बाद साल 1954 में “डेविड वारेन” ने इस समस्या को सुलझाने के लिए एक डिवाइस का ईजाद किया, प्लेन में सारे महत्वपूर्ण डेटा को रिकार्ड करने का काम करे और इसे नाम दिया गया “ब्लैक बॉक्स”।

साल 1954 में सबसे पहला ब्लैक बॉक्स को हवाई जहाज में लगाया गया इसके बाद समय के साथ इसकी डिजाइन और टेक्नॉलजी में बदलाव आते रहे है।

ब्लैक बॉक्स का इतिहास –

साल 1954 में ब्लैक बॉक्स का पहला प्रोटोटाइप हवाई जहाज में लगाया गया, समय-समय पर इसकी बनावट में बदलाव आते रहे हैं।

शुरू में इसे ‘रेड एग’ पुकारा जाता था, जो रंग की दृष्टि से उसका अधिक उपयुक्त नाम था, ब्लैक बॉक्स के शुरुआती वर्जन में उसकी भीतरी दीवार को काला रखा जाता था।

वह फोटो फिल्म की टेक्नॉलजी पर आधारित आँकड़ों को एकत्र करने वाला उपकरण था और भीतरी काला रंग किसी अंधेरे कक्ष की तरह काम करता था, शायद इसी वजह से इसका नाम ब्लैक बॉक्स पड़ा।

समय के साथ इम्प्रूव होती टेक्नॉलजी ने इसे पहले की तुलना में और भी ज्यादा मजबूत और सुरक्षित बनाया है।

अभी के समय में ब्लैक बॉक्स के अंदर ठोस सर्किट और चिप का प्रयोग किया जाता है, जिससे कि ऊंचाई से गिरने या टूटने का खतरा बहुत कम होता है साथ ही पहले से ये बहुत ज्यादा एनर्जी एफ़िशिएन्ट भी है।

शुरुआती समय के ब्लैक बॉक्स में डाटा को रिकार्ड करने के लिए फिल्म काप्रयोग किया जाता था जिससे इसका साइज़ बहुत बड़ा होता था, जिसके कारण ये कम ड्यूरेबल होता था।

ब्लैक बॉक्स की शुरुआत –

साल 1953 में, मेलबर्न (आस्ट्रेलिया) में रक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी संगठन के वैमानिकी अनुसंधान प्रयोगशालाओं (ARL) में काम करते हुए ऑस्ट्रेलियाई शोध वैज्ञानिक “डेविड वारेन” ने एक ऐसे डिवाइस की का विचार किया जो हवाई जहाज की हो रही सभी गतिविधियों को रिकॉर्ड कर सके।

इस आईडिया को रखते हुए उन्होंने साल 1954 में उन्होंने “ए डिवाइस फॉर असिस्टिंग इन्वेस्टिगेशन इन एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट्स” (“A Device for Assisting Investigation in Aircraft Accidents”) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की।

वॉरेन ने 1956 में “द एआरएल फ्लाइट मेमोरी यूनिट” (“The ARL Flight Memory Unit”) नामक एक प्रोटोटाइप एफडीआर का निर्माण किया और वर्ष 1958 में उन्होंने पहला संयुक्त एफडीआर/सीवीआर प्रोटोटाइप बनाया. इसे यात्री विमानों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था।

स्पष्ट रूप से दुर्घटना के कारण का पता करने एवं उसकी रोकथाम के लिए, पहले तो दुनिया भर के विमानन अथॉरिटीज में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

लेकिन साल 1958 में यह मामला बदल गया जब ब्रिटिश एयर रजिस्ट्रेशन बोर्ड के सचिव सर रॉबर्ट हार्डिंगम ने एआरएल का दौरा किया और ब्लैक बॉक्स के निर्माणकर्ता डेविड वारेन से उनका परिचय कराया गया।

रॉबर्ट हार्डिंगम ने आविष्कार के महत्व को अनुभव किया और शोध वैज्ञानिक “डेविड वारेन” के लिए यूके में उनके द्वारा बनाए गए इस प्रोटोटाइप का प्रदर्शन करने की व्यवस्था की।

एआरएल ने वॉरेन के द्वारा बनाए गए इस प्रोटोटाइप को हवाई चरण में विकसित करने में मदद करने के लिए एक इंजीनियरिंग टीम को दिया गया।

बाद में इस टीम ने एक काम करने वाला डिज़ाइन विकसित किया, जिसे प्लेन में लगाया जा सके, इस शुरुआती उपकरण में फायरप्रूफ और शॉकप्रूफ केस लगाया गया।

ब्रिटिश फर्म एस. डावल एंड संस लिमिटेड (S. Daval & Sons Limited) द्वारा बनाई गई एआरएल प्रणाली को इसके आकार और चमकीले लाल रंग के कारण “रेड एग” (Red Egg) नाम दिया गया था।

Black Box Kya Hota Hai
ब्लैक बॉक्स का शुरुआती वर्जन जिसे रेड एग नाम दिया गया।

बाद में इसे डमी के साथ अपग्रेड किया जाता रहा, दुर्घटना के बाद सुरक्षित रूप से डाटा को पाने के लिए इसे विमान के पिछले हिस्से में लगाया गया।

जैसा कि हमने पहले भी बात किया है, पिछला हिस्सा विमान का वो हिस्सा होता है जो किसी भी तरह के दुर्घटना में कम प्रभावित होने वाला हिस्सा होता है।

1965 के आसपास से ही यात्री विमानों और कमर्शियल सामान ढोने वाले सभी तरह के विमानों में इसका प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया।

ब्लैक बॉक्स के अंदर क्या होता है? –

ब्लैक बॉक्स का मुख्य कार्य डेटा को एकत्र करने का होता है, इसके लिए शुरुआत में फिल्म आधारित सिस्टम का प्रयोग किया जाता था।

लेकिन आज के समय में इसके स्थान पर चिप का प्रयोग होता है, जिससे इसका साइज़ छोटा होने के साथ यह बहुत ज्यादा मजबूत भी है।

अभी के संयमी में ब्लैक बॉक्स के अंदर मौजूद उपकरण के बारे में आप इस विडिओ में देख सकते है।

ब्लैक बॉक्स से जुड़े तथ्य –

planecrashinfo.com एक ऐसी वेबसाईट है जहां पर इतिहास में हुए सभी प्लेन दुर्घटनाओं के बारे में जानकारी मिल जाएगी।

केवल इतना ही नहीं इस वेबसाईट पर इतिहास में हुई दुर्घटनाओं के बारे में पूरे विस्तार से चीजें मौजूद है।

यदि आप किसी दुर्घटनाग्रस्त प्लेन के पायलट और एयर ट्रैफिक कंट्रोल के बीच हुई बातचीत के बारे में जानना चाहते है तो इस वेबसाईट पर आपको जानकारी मिल जाएगी।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल –

ब्लैक बॉक्स का रंग कैसा होता है?

ब्लैक बॉक्स का रंग नारंगी होता है, ताकि यह दूर से ही दिखाई दे, इसका ब्लैक बॉक्स नाम इसके शुरुआती वर्जन में फिल्म (डाटा को स्टोर करने के लिए) के कारण अंदर प्रयोग किये गए काले रंग के कारण पड़ा।

ब्लैक बॉक्स का डाटा कैसे एक्सेस करें?

planecrashinfo.com एक ऐसी वेबसाईट है जहां पर इतिहास में हुए सभी प्लेन दुर्घटनाओं के बारे में जानकारी मिल जाएगी।

ब्लैक बॉक्स का विमान में क्या उपयोग है?

ब्लैक बॉक्स की मदद से किसी विमान दुर्घटना के बाद उस समय मौजूद परिस्थितियों के बारे में सटीक अनुमान लगाने में सहायता मिलती है, जिससे भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सके।

why black box is called black box?

शुरू में इसे ‘रेड एग’ पुकारा जाता था, जो रंग की दृष्टि से उसका अधिक उपयुक्त नाम था, ब्लैक बॉक्स के शुरुआती वर्जन में उसकी भीतरी दीवार को काला रखा जाता था, वह फोटो फिल्म की टेक्नॉलजी पर आधारित आँकड़ों को एकत्र करने वाला उपकरण था और भीतरी काला रंग किसी अंधेरे कक्ष की तरह काम करता था, शायद इसी वजह से इसका नाम ब्लैक बॉक्स पड़ा।

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Summary –

तो दोस्तों, ब्लैक बॉक्स क्या होता है? (Black Box Kya Hota Hai) इसके बारे में यह लेख आप सभी को कैसा लगा हमें जरूर बताएं, यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई भी सवाल या सुझाव है तो कृपया नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से जरूर लिखें ! धन्यवाद 🙂

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