Carbon Dating Kya Hai | कार्बन डेटिंग क्या है परिभाषित कीजिए | Carbon Dating in Hindi | कार्बन डेटिंग क्या है In Hindi | Carbon Dating Kya Hai Paribhashit Kijiye | ज्ञानवापी कार्बन डेटिंग | ज्ञानवापी मस्जिद कार्बन डेटिंग
अक्सर विज्ञान में हम पढ़ते है, कि किसी अवशेषों से उसके मौजूदगी के समय का पता लगाया जाता है, इतना ही नहीं धरती पर जीव के युग की शुरुआत कब हुई, इंसानी युग की शुरुआत कब हुई, इन सबके बारे में कैसे पता कर पाते है? जबकि हम उस समय थे भी नहीं, तो इसका जवाब है ‘कार्बन डेटिंग’…
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है… कार्बन डेटिंग के बारे में, यह क्या है? कार्बन डेटिंग की मदद से किसी चीज के बारे में कैसे पता लगाते है? कार्बन डेटिंग की विधि कैसे काम करती है? उम्मीद करता हूँ इससे आपको कुछ सीखने को अवश्य मिलेगा।
Carbon Dating Kya Hai –

हमारी धरती का इतिहास बहुत पुराना है, यहाँ पर जीवन की शुरुआत लगभग चार अरब साल पहले हुई थी।
पहले एक से अधिक कोशिकाओं के तंत्र वाले जीव की शुरुआत लगभग 60 करोड़ साल पहले हुई थी और लगभग 36 करोड़ साल पहले, पहला जानवर पानी में से जमीन पर पहुँचा।
लगभग 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोर धरती से विलुप्त हुए और लगभग 2 लाख साल पहले वर्तमान इंसानी नस्ल का विकास हुआ और धीरे-धीरे हम आज अपने वर्तमान स्वरूप में पहुँच गए है।
विज्ञान में हम इन सारी चीजों को उनके घटनाक्रम में पढ़ते है, तो एक सवाल मन में आता है कि आखिर हमें ये पता कैसे चल पाता है कि आखिर कौन सी चीज कितनी पुरानी है?
तो इस सवाल का जवाब है “कार्बन डेटिंग” जिसकी मदद से यह सब संभव हो पाता है।
कार्बन डेटिंग क्या है In Hindi? –
“कार्बन डेटिंग” या “रेडियो कार्बन डेटिंग” वह तकनीक है जिससे किसी भी जीव या पदार्थ के अवशेष को अध्ययन करके पता लगाया जाता है।
इस जांच में कार्बन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसकी मदद से ही किसी भी अवशेष के उम्र का पता लगाया जाता है।
इस मेथड को सन् 1949 में एक अमेरिकन प्रोफेसर विलार्ड एफ. लिब्बी (Willard F. Libby | 1908-1980) ने खोजा था।
इसनकी यह खोज इतनी महत्वपूर्ण थी कि बाद में इनको नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कार्बन डेटिंग क्या है परिभाषित कीजिए –
इसको समझने से पहले हम, कार्बन के बारे में तथा उसके समस्थानिक के बारे में और रेडियोएक्टिविटी को समझते है।
धरती पर मौजूद सभी चीजें अणु से मिलकर बनी है, यह द्रव्य का वह भाग है, जिसमें उसके सारे गुण मौजूद रहते है और उसे अब तोड़ नहीं जा सकता, यदि उसे तोड़ा गया तो वह द्रव्य अपने गुणों को खो देगा।
सभी द्रव्य कुछ बेसिक तत्व या उसके मिश्रण से बने होते है, इन बेसिक एलिमेंट्स को हम उनके परमाणु क्रमांक (Atomic Number) के हिसाब से व्यवस्थित करके रखते है, इस टेबल को आवर्त सारणी कहा जाता है।
इस आवर्त सारणी के अनुसार किसी भी तत्व का परमाणु क्रमांक उस तत्व के केंद्र में मौजूद प्रोटानों की संख्या को बताता है।
स्कूल के दिनों में हम सबने इसके बारे में पढ़ा होगा,
जैसे – हाइड्रोजन के नाभिक (केंद्र) में 1 प्रोटॉन होता है, इसलिए इसका परमाणु क्रमांक 1 होता है।
इसी तरह हीलियम के नाभिक में दो प्रोटॉन होते है, इसलिए इसका परमाणु क्रमांक 2 होता है।
अभी तक 118 तत्वों को खोज जा चुका है, जिनमें से 94 ऐसे तत्व है जो प्रकृति में पाए जाते है और बाकी को लैब में बनाया गया है।
इन सभी तत्वों के अपने-अपने गुण है जो इन्हें उन पार्टिकल्स की वजह से मिलते है, जिनसे ये मिलकर बने होते है।
केमिस्ट्री के अनुसार अलग-अलग तत्व कुछ और नहीं बाकी इलेक्ट्रान, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के अलग-अलग संयोजन मात्र है।
हर तत्व को अपना खास गुण अपने युनीक संयोजन (कॉम्बिनेशन) से मिलती है।
केमिकल रिएक्शन जिनमें दो या दो से ज्यादा तत्व (एलिमेंट्स) या यौगिक (कंपाउंड) बनाते है जो केवल इलेक्ट्रान के ट्रांसफर से ही संभव होता है।
प्रोटॉन और न्यूट्रॉन नाभिक के अंदर बहुत ही मजबूत नाभिकीय बल (नूक्लीअर फोर्स) से बंधें हुए होते है।
जबकि इलेक्ट्रान फ्री होते है और एक निश्चित कक्षा में घूमते रहते है, जो बल इन इलेक्ट्रॉनों को बांधे रखता है, यह कमजोर होता है, इसलिए किसी भी रिएक्शन के समय इसका आसानी से आदान-प्रदान हो जात है।
प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के मजबूत नाभिकीय बाल से बंधे होने के कारण, नाभिक को तोड़ने के लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है।
कोई न्यूक्लियस जब टूटता है तो नाभिक में मौजूद प्रोटोनों की संख्या के आधार पर अलग-अलग तत्वों में बदल जाता है, ऐसी स्थिति में कुछ ऐसे भी तत्व बन जाते है , जिनका नाभिक अस्थिर होता है।
इन अस्थिर तत्वों के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या जरूरत से ज्यादा या काम हो सकती है, लेकिन इसकी सख्या कम या ज्यादा होने के कारण उस तत्व के गुण पर फर्क नहीं पड़ता।
क्योंकि किसी तत्व का गुण उसके नाभिक मौजूद प्रोटॉनों की संख्या के ऊपर निर्भर करता है, इसलिए ऐसे बेसिक तत्व के समस्थानिक (समस्थानिक) कहलाते है।
न्यूक्लियस में न्यूट्रॉन की संख्या जरूरत से कम होने पर, वह बल जो नाभिक को बांध कर रखता है, वह थोड़ा कमजोर पड़ जाता है।
इसके कारण अणु स्थिर (Stable) नहीं रह पाता है और अपनी स्थिरता को पाने के लिए कुछ पार्टिकल्स को छोड़ने लगता है, ताकि नभिर में स्थिरता को बनाया जा सके।
क्योंकि कुछ पार्टिकल के निकल जाने से तत्व के अंदर कुछ न्यूट्रॉन, प्रोटॉन कम हो जाते है, इसलिए अब वो अणु बचे हुए प्रोटॉन की संख्या के आधार पर किसी दूसरे तत्व (Element) में बदल जाता है।
इस तरह के एलिमेंट्स को अन्स्टैबल एलीमेंट कहते है, क्योंकि ये लगातार एक एलीमेंट से दूसरे एलीमेंट में क्षय (Decay) होते रहते है।
और इस प्रक्रिया के दौरान ये कई तरह के पार्टिकल्स और रेडिएशन को छोड़ते है, इसलिए इनको रेडियोऐक्टिव तत्व (Radioactive Elements) कहा जाता है, इस तत्व के इस गुण को रेडियोएक्टिविटी कहा जाता है।
रेडियोएक्टिव तत्व के एक रूप से दूसरे रूप में बदलने का फिक्स टाइम होता है जिसे मापा (Mesure) जा सकता है।
किसी भी तत्व के क्षय होने के इस समय को अर्द्धआयु (HalfLife) के रूप में जाना जाता है।
हाफ लाइफ से मतलब उस समय से है जिस समय में किसी एलीमेंट की आधी मात्रा किसी दूसरे तत्व में बदल जाती है।
अलग-अलग रेडियोएक्टिव तत्व की हाफ लाइफ कुछ मिली सेकंड से लेकर कई अरब वर्ष तक हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर फर्मियम244 की हाफ लाइफ मात्र 3.3 मिली सेकंड है और वही रुबीडियम87 की हाफ लाइफ 4.9 बिलियन वर्ष है।
रेडियोएक्टिव तत्वों के इसी गुण का प्रयोग हम किसी घड़ी की तरह से कर सकते है।
ये तो हम जानते ही है कि किसी भी चीज के समय के बारे में बताने के लिए उस चीज का हमारी घड़ी से जुड़ा होना बहुत ही जरूरी है।
जैसे – स्कूल सुबह 10 बजे खुलता है और शाम को 4 बजे बंद होता है , इस दौरान बच्चे 6 घंटे की पढ़ाई करते है।
अब हमें 6 घंटे की पढ़ाई की गणना करने के लिए सुबह और शाम के समय तक को नोट करना जरूरी है, तभी तो हम बता पाएंगे।
उसी तरह हजारों सालों पहले किसी जीव के इतिहास को जानने के लिए हमें किसी ऐसी घड़ी की जरूरत है, जो उस समय मौजूद हो, यहीं पर काम आता है, रेडियोएक्टिव तत्व का।
ऊपर हमने समझा कि यदि कोइ रेडियोएक्टिव तत्व है तो उसके एक तत्व से दूसरे तत्व में बदलने की प्रक्रिया एक समान रहती है और उसकी अर्द्धआयु से उस तत्व के पुराने होने का पता लगाया जा सकता है।
तो अब सवाल आता है कि ऐसा कौन सा तत्व है जो काम में आता है? तो जवाब है “कार्बन”।
रेडियोएक्टिव घड़ी के रूप में मौजूद कार्बन-14 के माध्यम से किसी भी जीवाश्म के आयु का पता लगाया जा सकता है।
कार्बन के अलावा ऐसे बहुत से तत्व है जिनका प्रयोग रेडियोएक्टिव घड़ी के रूप में कार्य करते है, लेकिन इनका हमारे लिए कोई काम नहीं है।
रेडियोएक्टिव तत्व के रूप में मौजूद इन घड़ियों का किसी न किसी घटना से जुड़ा होना बहुत जरूरी है।
ऊपर स्कूल के केस में हमने देखा कि स्कूल के खुलने और बंद होने के टाइम के बारे में पता होता है, लेकिन यदि केवल स्कूल के खुलने के टाइम के बारे में पता हो तो हम ये आसानी से बता सकते है, कि स्कूल में क्लास के शुरू हुए कितना समय हो गया है।
बिल्कुल इसी तरह कार्बन-14 किसी जीवाश्म के बारे में बताता है, जब किसी जीव की मृत्यु हो जाती है, तो उसी समय से कार्बन एक रूप से दूसरे रूप में बदलने लगता है।
कार्बन एक ऐसा तत्व है जो हर जीवधारी और निर्जीव चीजों में पाया जाता है, कार्बन डेटिंग के समय पर हम इसी कार्बन के समस्थानिकों के बारे में पता लगाते है।
कार्बन की अर्द्धआयु 5730 वर्ष है, समय के साथ यह अपने दूसरे रूप में नियत समय से बदलता रहता है।
कार्बन के समस्थानिकों के बारे में अध्ययन करके इसकी अर्द्धआयु का पता लगता है और फिर इस अर्द्धआयु के आधार पर किसी चीज के इतिहास के बारे में पता लगाया जाता है
जिससे वह जीवाश्म कितना पुराना है, इसकी जानकारी हो पाती है।
कार्बन-14 क्या है? –
कार्बन डेटिंग के लिए C-14 यानी कार्बन-14 की जरूरत होती है, हमारे वातावरण में तीन तरह के कार्बन मौजूद है, – कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14।
इनमें कार्बन-12 और कार्बन-13 स्थाई कार्बन है, और कार्बन-14 अस्थाई होता है, कार्बन-14 को खास इसलिए माना जाता है क्योंकि किसी पत्थर, हड्डी या अन्य वस्तु से लिए गए सैंपल पर यह घटित हो जाता है।
कार्बन – 14 जिसकी अर्द्ध आयु 5730 वर्ष है यह एक ऐसी ही घड़ी है जिसका प्रयोग हम, फ़ॉसिल्स की उम्र पता करने के लिए करते है।
कार्बन अपने अंदर तरह-तरह के बॉन्ड बना सकने की खासियत के कारण जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है, यह पृथ्वी पर मौजूद जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
धरती पर मौजूद जीव अलग-अलग स्रोतों से कार्बन को लेते और छोड़ते है, जीव जगत में कार्बन की एंट्री पौधों के द्वरा होती है।
और फिर यह फूड चेन (पेड़-पौधों को खाने वाले जानवर और फिर इनको खाने वाले दूसरे जीवन जन्तु तक) से होते हुए सभी जीवधारियों तक पहुँच जाता है।
जैसा कि हम जानते है पेड़ पौधे सूर्य की रोशनी के साथ कार्बन डाई आक्साइड का इस्तेमाल करके ग्लूकोज बनाते है।
पेड़-पौधे यह कार्बन डाई आक्साइड वातावरण से लेते है और कार्बन की एंट्री फूड चेन में यही से होती है।
और इस पौधे को जब कोई जानवर खाता है तो यह कार्बन उसके शरीर का हिस्सा बन जाता है।
जानवर जब सांस लेने के दौरान हवा छोड़ता है तो उसमें से कार्बन डाई आक्साइड फिर से वातावरण में चल जाता है और इस तरह से सभी जीवों में कार्बन का लगातार प्रवाह होता रहता है और इस कार्बन के 100 मिलियन में से एक अणु (Atom) कार्बन-14 का भी होता है।
कार्बन-14 ऐसा तत्व है जिसका निर्माण प्रकृति में प्राकृतिक रूप से होता रहता है।
सूरज से आने वाली कॉस्मिक किरने जब धरती वातावरण में प्रवेश करती है, तो उनमें से कुछ किरणें नाइट्रोजन के अणु से टकराकर उसके नाभिक को तोड़कर (हमने ऊपर पढ़ा है कि यह नभई एक बहुत मजबूत नाभिकीय बल से जुड़ा होता है।) उसे कार्बन-14 में बदल् देती है।
नाइट्रोजन और कार्बन के अणु (Atom) में केवल एक प्रोटॉन का फर्क होता है, नाइट्रोजन के ऐटम में 7 प्रोटॉन और 7 न्यूट्रॉन होते है, वहीं कार्बन के ऐटम में 6 प्रोटॉन और 8 न्यूट्रॉन होते है।
कॉस्मिक किरणों के टकराव से नाइट्रोजन के नाभिक से एक प्रोटॉन क्षय (Dekay) होकर न्यूट्रॉन में बदल जाता है, जिसके कारण नाइट्रोजन का अणु कार्बन-14 के ऐटम में बदल जाता है।
क्योंकि कार्बन-14 वातावरण में लगातार बनता रहता है, इस तरह कार्बन-14 भी जीवन का एक हिस्सा बन जाता है, इसी कारण से सभी जीवों में कार्बन का वही प्रतिशत मौजूद होता है, जो सभी जीवों के अंदर पाया जाता है।
यह प्रतिशत तभी तक बराबर रहता है, जब तक वह जीव जीवित है, मरने के बाद वह जीव वातावरण से कार्बन-14 को लेना बंद कर देता है।
क्योंकि कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव तत्व है तो उसके बाद अपने समस्थानिकों में बदलने लगता है जिसके कारण उसमें कार्बन-14 की मात्रा में एक अनुपात में लगातार कमी होने लगती है।
कार्बन-14 की मात्र में इसी कमी का पता लगा लें तो हम उस अवशेष की आयु का लगभग अनुमान लगा सकते है।
इस तकनीक से लगभग 50,000 साल तक के अवशेष का करीब-करीब सटीक पता लगाया जा सकता है।
लेकिन यदि कोई अवशेष 50,000 साल से ज्यादा पुराना है तो उसका पता कार्बन डेटिंग से नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि तब तक कार्बन-14 का इतना (Decay) हो चुका होता है, कि उसे ट्रेस नहीं किया जा सकता है।
कार्बन डेटिंग क्या होता है? इसके बारे में जानने के लिए इस विडिओ को देख सकते है।
कार्बन का रासायनिक परिवर्तन –
ऊपर हमने पढ़ कि कार्बन के तीन आइसोटोप (समस्थानिक) होते है कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 जिसमें से कार्बन -14 सबसे अस्थिर होता है।
रासायनिक भाषा में में इसे कुछ इस तरह से लिखा जाता है –

जब वायुमंडल में कॉस्मिक किरणें नाइट्रोजन से रिएक्ट करती है तो उससे कार्बन-14 का आइसोटोप बनाती है।
अब इस कार्बन-14 के आइसोटोप का ऑक्सीकरण होता है, जिससे यह कार्बन-14 का आक्साइड बनाता है।

ये जो कार्बन का आक्साइड है, वातावरण में मौजूद बाकी के कार्बन डाई आक्साइड के साथ मिक्स हो जाता है, जिसे पौधे सूर्य के प्रकाश के साथ लेकर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया करके, भोजन बनाते है।
इन प्लांट्स को जानवर और इंसान कहते है, तथा दूसरे मांसाहारी जीव भी शाकाहारी जीव को खाते है, जिससे यह कार्बन-14 उनके शरीर में चला जाता है।
अब इस कार्बन-14 और कार्बन-12 का अनुपात जीवधारियों के शरीर में या पौधों में समान रहता है और उतना ही अनुपात हमारे वातावरण में भी मौजूद है।

तो जब किसी जीव की या पेड़ की मृत्यु हो जाती है तो इसका कार्बन-14 वापस से नाइट्रोजन में क्षय (Decay) होना या बदलना शुरू हो जाता है।
और धरती के नीचे दबे होने के बाद लगभग 5730 वर्ष में आधा नाइट्रोजन में बदल जाता है।
तो कार्बन डेटिंग के समय कार्बन-14 की इसी बदलाव को मापा जाता है, जिससे किसी जीवाश्म की लगभग सटीक आयु निकाल ली जाती है।
ज्ञानवापी कार्बन डेटिंग –
अभी कुछ समय पहले वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में विवादित स्थान के कार्बन डेटिंग की मांग की जा रही थी।
अगर ऐसा होता है तो किसी भी चीज जैसे – पत्थर आदि की जांच करने के लिए सर्वे करने वाली टीम उस पदार्थ में मौजूद कार्बन के संस्थानिकों के जांच करती है।
और फिर उस आधार पर वे जांच करने के बाद टीम किसी भी चीज उम्र का लगभग सटीक अनुमान लगा लेती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल –
कार्बन डेटिंग पद्धति क्या है?
कार्बन डेटिंग की मदद से किसी जीवाश्म की आयु का लगभग सटीक पता लगाया जात है ।
कार्बन डेटिंग पद्धति के जन्मदाता थे?
इस मेथड को सन् 1949 में एक अमेरिकन प्रोफेसर विलार्ड एफ. लिब्बी (Willard F. Libby | 1908-1980) ने खोजा था।
रेडियो कार्बन विधि क्या है?
रेडियो कार्बन विधि की मदद से किसी जीवाश्म की आयु का लगभग पता लगाया जाता है।
कर्बन डेटिंग में किस कार्बन का प्रयोग होता है?
कार्बन डेटिंग में कार्बन-14 का प्रयोग होता है, कार्बन-14 अस्थाई तत्व है जो किसी जीव की मृत्यु के बाद विघटित होने लगता है, इसकी मात्र की गणना करके किसी जीवाश्म की लगभग आयु की गणना की जाती है।
यूरेनियम डेटिंग क्या है?
यूरेनियम डेटिंग भी कार्बन डेटिंग की तरह ही किसी पदार्थ की उम्र पता करने के लिए प्रयोग की जाती है।
कार्बन डेटिंग का प्रयोग क्यों किया जाता है?
धरती पर मौजूद हर जीवधारियों के अंदर कार्बन पाया जाता है, और समय के साथ कार्बन का विघटन एक निश्चित पैटर्न में होता है, इसी कार्बन के दूसरे रूप में परिवर्तन को माप कर किसी जीवाश्म की आयु का पता लगाया जाता है।
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Summary –
तो दोस्तों, कार्बन डेटिंग क्या है? (Carbon Dating Kya Hai) इसके बारे में यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स में यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂
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