DC Current Kya Hai | डीसी करंट क्या है | Uses of Direct Current | AC और DC करेंट में अन्तर | DC Current in Hindi | DC Current Uses | Benifits of DC Current
बिजली आज के समय में हमारे हर काम के लिए एक जरूरत बन गयी है, बिना इसके आज हम अपने जीवन की सुगमता की कल्पना भी नहीं कर सकते है।
वैसे तो बिजली के कई रूप होते है लेकिन आज हम बात करने जा रहे है, हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली बिजली यानि डीसी करंट (DC Current) का एक महत्वपूर्ण रोल है।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर, आज हम बात करने जा रहे है डीसी करंट के बारे में… डीसी करंट क्या है? (DC Current Kya Hai) इसके क्या फायदे और नुकसान है? इसका प्रयोग कहां होता है? डीसी और एसी करंट में क्या फर्क है? जानेंगे इन सारी बातों के बारे में, साथ ही इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में भी उम्मीद करता हूँ आपको यह पसंद आएगा।
डीसी करंट क्या है? (DC Current Kya Hai) –
वह धारा जो समय के साथ अपरिवर्तित रहती है, उसे डायरेक्ट करेंट या डीसी कहा जाता है, डीसी का प्रयोग हमारे जीवन में में प्रयोग होने वाले उपकरणों में किया जाता है, आमतौर पर सभी डिवाइसेस जो हम अपने घर में प्रयोग करते है वे सभी डायरेक्ट करेंट या डीसी पर ही काम करते है।
डीसी करेंट को जब हम एक रेखा की मदद से ग्राफ पर दिखाते है तो यह एक सीधी रेखा प्राप्त होती है –
एसी करंट क्या है? –
वह धारा जिसका मान समय के साथ बदलता रहता है, उसे प्रत्यावर्ती धारा या एसी करेंट कहते है, डीसी करेंट की तरह ही एसी करेंट का भी हमारे लिए बहुत ही जरूरी है।
AC का फुल फॉर्म “Alternative Current” (आल्टरनेटिव करंट) होता है, हिंदी में इसे “प्रत्यावर्ती धारा” कहा जाता है।
हमारे घरों में ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से जो करेंट सप्लाइ होती है वह एसी करेंट ही होती है, लेकिन इस धारा का किसी भी आम घरेलू उपकरण (इन्डस्ट्रीअल प्रयोग को छोड़कर) में सीधे नहीं प्रयोग किया जाता है।
“प्रत्यावर्ती धारा” का परिमाण आवर्त रूप में बदलता रहता है तथा समय धारा के मध्य बनाया गया आरेख ज्या वक्र प्राप्त होता है, नीचे इस चित्र को देखें –
आप आपके मन में यह सवाल या रहा होगा कि हमारे घरों में तो एसी करेंट आता है, फिर ये सारे उपकरण डीसी पर कैसे चलते है।
तो इसका जवाब है कि हर उपकरण के अंदर एक करेंट को डीसी में बदलने की व्यवस्था रहती है जिसकी मदद से बड़ी ही आसानी से एसी करेंट को डीसी में बदलकर प्रयोग किया जाता है।
एसी करेंट और डीसी करेंट को इस तरह प्रयोग करने के कुछ कारण है और इनकी कुछ सीमाएं है, जिसकी वजह से हमें ये सारे सिस्टम लगाने पड़ते है, जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे।
दिष्ट धारा (DC) के गुण –
1. दिष्ट धारा का बहाव सदैव एक ही दिशा में होता है।
2. दिष्ट धारा रसायनिक प्रभाव और चुंबकीय प्रभाव तथा ऊष्मीय प्रभाव को दर्शाती है।
3. दिष्ट धारा प्लस (+) से माइनस (-) की ओर बही है और धारा का बहाव भी इसी तरफ माना जाता है, जबकि धारा में बहने वाले इलेक्ट्रॉन माइनस (-) से प्लस (+) की ओर चलते है, इसलिए यह कहा जाता है की धारा की दिशा सदैव इलेक्ट्रानों की दिशा के विपरीत होती है।
4. दिष्ट धारा (DC) को प्रत्यावर्ती धारा से पहले ही, थॉमस एडिसन के द्वारा बनाया गया था।
5. दिष्ट धारा (DC) के साथ ट्रांसफॉर्मर को प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
दिष्ट धारा जनित्र (Direct Current Generator) –
सिद्धान्त (Principle) – यह प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की भाँति ही होता है, अन्तर केवल इतना होता है कि इसमें सर्पीवलयों के स्थान पर विभक्त वलय लगे होते हैं।
दिष्ट धारा जनित्र में भी जब कोई कुण्डली या आर्मेचर शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है, तो उसमें विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त के अनुसार प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है।
दिष्ट धारा जनित्र के निम्न भाग होते हैं –
(i) क्षेत्र चुम्बक (Field Magnet) – यह एक शक्तिशाली छड़ चुम्बक होता है. जिसके ध्रुवों के मध्य कुण्डली घूमती है। इसके द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएँ N से S की ओर होती हैं।
(ii) आर्मेचर (Armature) – यह एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है, जो कच्चे लोहे के क्रोड पर पृथक्कित ताँबे के तार के अनेक फेरों को लपेट कर बनाई जाती है।
(iii) विभक्त वलय (Split Rings) – ये वलय किसी पीतल की धातु के बेलन को उसकी अक्ष के अनुदिश दो बराबर भागों में काटकर बनाए जाते हैं। कुण्डली इन दोनों वलयों में जुड़ी रहती है। इस आर्मेचर कुण्डली को क्षेत्रीय चुम्बक के ध्रुवों (NS) के मध्य किसी बाह्य स्रोत, जैसे-पेट्रोल इंजन, जल टरबाइन, इत्यादि से अत्यधिक गति से घुमाया जाता है।
(iv) ब्रुश (Brush) – ये कार्बन के बने होते हैं, जो चालक होते हैं। बाहरी परिपथ में धारा ब्रुशों B, व B, की सहायता से ही प्रवाहित होती है, ये विभक्त वलय को स्पर्श करते हैं तथा अपने स्थान से विस्थापित होते रहते हैं।
कार्यविधि (Procedure) –
जब आर्मेचर चुम्बकीय ध्रुवों के मध्य दक्षिणावर्त दिशा में घूर्णन करता है, तो आर्मेचर से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है और आर्मेचर कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल प्रेरित हो जाता है तथा इस विद्युत वाहक बल के कारण कुण्डली में धारा प्रवाहित होने लगती है।
आर्मेचर कुण्डली के पहले आधे चक्कर में आर्मेचर कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल का मान शून्य से बढ़कर अधिकतम हो जाता है तथा पुनः शून्य हो जाता है।
दूसरे आधे चक्कर विद्युत वाहक बल विपरीत दिशा में शून्य से अधिकतम मान तक पहुँच जाता तथा पुनः घटकर शून्य हो जाता है।
परन्तु प्रत्येक आधे चक्कर के पश्चात् वलय के भाग आपस में ब्रुशों के स्थान को बदल देते हैं, अतः बाह्य परिपथ में विद्युत धारा निरन्तर एक ही दिशा में प्रवाहित होती रहती है अर्थात् दिष्ट धारा प्राप्त होती है।
DC और AC करंट में क्या अन्तर है? –
दिष्ट धारा तथा प्रत्यावर्ती धारा में प्रमुख अंतर निम्नलिखित है –
दिष्ट धारा | प्रत्यावर्ती धारा |
DC करंट का परिमाण और दिशा समय के साथ नियत रहता है अर्थात इसमें कोई भी बदलाव नहीं देखने को मिलता है। | AC करंट या प्रत्यावर्ती धारा का परिमाण आवर्त के रूप में बदलता रहता है |
यदि इसे ग्राफ पर प्रदर्शित करें तो एक सीधी रेखा प्राप्त होती है। | समय और धारा के मध्य खींचा गया आरेख जय वक्र प्राप्त होता है। प्रत्यावर्ती धारा के प्रत्येक चक्र में धारा की दिशा दो बार उत्क्रमित (पहले आधे चक्र में ऊपर तथा दूसरे आधे चक्र में नीचे की ओर) होती है। |
दिष्ट धारा को बैटरी सेल (प्राथमिक) तथा सीसा संचायक सेल से प्राप्त करते है। | प्रत्यावर्ती धारा को विद्युत जनित्र या प्रत्यावर्ती डायनेमो से प्राप्त किया जा सकता है। |
घरों में टॉर्च, मोबाईल फोन या अन्य सभी प्रकार की डिवाइसेस में इसका प्रयोग होता है। | घरों तथा कारखानों में इसका प्रयोग होता है। |
इसकी फ्रीक्वेन्सी 0 (शून्य) होती है। | प्रत्यावर्ती धारा की फ्रीक्वेन्सी 50 Hz या 60 Hz होती है। |
दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में परिवर्तित करने के लिए इन्वर्टर का प्रयोग किया जाता है। | प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलने के लिए रेक्टीफ़ायर (rectifier) का प्रयोग किया जाता है। |
दिष्ट धारा को अधिक दूरी तक नहीं भेजा जा सकता है। | प्रत्यावर्ती धारा को उच्च वोल्टेज पर परिवर्तित करके इसे अधिक दूरी तक आसानी से भेज जा सकता है। |
दिष्ट धारा को कम्यूटेटर (Commutator) की मदद से उत्पन्न किया जा सकता है। | प्रत्यावर्ती धारा को अल्टीनेटर (Alternator) की मदद से उत्पन्न किया जा सकता है। |
प्रत्यावर्ती धारा के फायदे –
प्रत्यावर्ती धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहुत काम व्यय में आसानी से भेजा जा सकता है, इसके लिए प्रत्यावर्ती धारा को ट्रांसफॉर्मर की मदद से उच्च वोल्टेज पर परिवर्तित करके ऊंचे बिजली के खंभों की मदद से सैकड़ों किलोमीटर दूर फैक्ट्री अथवा गाँव/शहर में भेजा जा सकता है, उच्च वोल्टेज पर प्रत्यावर्ती धारा का ऊर्जा व्यय बहुत कम हो जाता है।
बाद में इस वोल्टेज को फिर से ट्रांसफॉर्मर की मदद से उच्च वोल्टेज से निम्न वोल्टेज पर लाया जाता है और वहाँ से फिर निकटतम शहर/गाँव या फैक्ट्री को विद्युत की आपूर्ति की जाती है।
दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा उत्पादन बहुत सस्ता होता है।
प्रत्यावर्ती धारा जनित्र दिष्ट जनित्र धारा की तुलना में मजबूत व सुगम होता है।
प्रत्यावर्ती धारा को ट्रांसफॉर्मर की सहायता से उच्च या निम्न वोल्टेज पर या निम्न से उच्च वोल्टेज पर बिना किसी ऊर्जा ह्रास के आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रत्यावर्ती धारा के नुकसान –
दिष्ट धारा की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा ज्यादा खतरनाक है, बड़ी ट्रांसमिशन वाली लाइनों में बहुत उच्च स्तर के वोल्टेज पर प्रत्यावर्ती धारा भेजी जाती है, जिसे छूने पर कुछ ही सेकंड में इंसान की मृत्यु हो सकती है।
विद्युत चुंबक व इल्क्ट्रोप्लेटिंग में इसका प्रयोग नहीं कर सकते है।
प्रत्यावर्ती धारा को अधिकांश उपकरण में सीधे प्रयोग नहीं किया जा सकता है, इसको पहले दिष्ट धारा में बदलना पड़ता है।
प्रत्यावर्ती धारा का एक बड़ा नुकसान यह भी है की इसको स्टोर करके नहीं रखा जा सकता है, इसके परिवर्ती गुण के कारण।
दिष्ट धारा के फायदे –
घरों में प्रयोग की जाने वाली लगभग सभी डिवाइसेस में दिष्ट धारा का ही प्रयोग किया जाता है, कुछ डिवाइसेस जैसे – इलेक्ट्रिक ऑयरन, साधारण रूम हीटर जैसे उपकरण प्रत्यावर्ती धारा से चलते है।
घरों में प्रत्यावर्ती धारा की सप्लाइ देखने को मिलती है, लेकिन जब भी हम किसी डिवाइस का प्रयोग करते है तो उसमें लगा सिस्टम एसी को डीसी में बदल देता है।
दिष्ट धारा को आसानी से बैटरी में स्टोर करके रखा जा सकता है और जरूर पड़ने पर उससे दिष्ट धारा और प्रत्यावर्ती धारा दोनों का उत्पादन किया जा सकता है।
किसी भी तरह की बैटरी (Battery) चार्ज करने के लिए सिर्फ दिष्ट धारा का ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
विद्युत चुंबक और इलेक्ट्रोप्लेटिंग में केवल दिष्ट धारा का ही प्रयोग किया जाता है।
दिष्ट धारा के नुकसान –
दिष्ट धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ज्यादा दूर तक नहीं भेजा जा सकता है, क्योंकि इसमें ऊर्जा का ह्रास बहुत ज्यादा होता है।
दिष्ट धारा का उत्पादन बहुत महंगा है, प्रत्यावर्ती धारा की तुलना में।
दिष्ट धारा को कंट्रोल करने के लिए परिपथ में रजिसटेन्स का प्रयोग किया जाता है, जिसमें ऊर्जा व्यय (ऊष्मा के रूप में) ज्यादा होता है।
दिष्ट धारा को अधिक वोल्टेज तक (600 वोल्ट से ज्यादा) उत्पादन नहीं किया जा सकता है।
DC और AC करंट के प्रयोग –
1. T.V. रीमोट, दीवार की घड़ी और हाथ की घड़ी में जो सेल होता है उसमें दिष्ट धारा होती है।
2. मोबाईल चार्जर, मोबाईल बैटरी, लैपटॉप की बैटरी इत्यादि सभी में दिष्ट धारा ही होती है।
3. जैसा की हमने ऊपर भी बात की है की घरों प्रयोग होने वाले लगभग सभी उपकरणों में दिष्ट धारा का प्रयोग होता है, कुछ डिवाइसेस को छोड़कर।
4. फैक्ट्रियों में बड़ी मशीनरी इत्यादि में प्रत्यावरी धारा का प्रयोग किया जाता है, घरों में साधारण रूम हीटर, साधारण इलेक्ट्रिक आयरन और हेयर ड्रायर इत्यादि में भी प्रत्यावर्ती धारा का प्रयोग किया जाता है।
हमारे घरों में कौन सा करंट आता है?
निकतम पावर हाउस से हमारे घरों में आने वाली बिजली एसी करंट होता है, आमतौर पर यह 440 वोल्ट और 50 Hz या 60Hz की फ़्रिक्वेन्सी पर होती है।
एसी करंट और डीसी करंट में क्या अंतर है?
प्रत्यावर्ती धारा (AC) का उत्पादन आल्टरनेटर के द्वारा किया जाता है, जबकि दिष्ट धारा (DC) का उत्पादन, डायनमो) से किया जाता है, प्रत्यावर्ती धारा (AC) का उत्पादन 33,000 volts तक किया जा सकता है जबकि दिष्ट धारा (DC) का उत्पादन केवल 650 वोल्ट तक ही किया जा सकता है।
डायरेक्ट करंट (DC) को हिंदी में क्या कहते हैं?
डायरेक्ट करंट (DC) को हम हिंदी भाषा में दिष्ट धारा/ प्रत्यक्ष धारा भी कहते हैं, दिष्ट धारा एक ऐसी विद्युत धारा है जो हमेशा एक ही दिशा में बहती है।
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