Isro Kya Hai | Isro Kya Hai in Hindi | इसरो क्या है? | Isro Kya Hai Hindi Mein | Isro Kya Hai Hindi | Isro Kya Hai Hindi Me | इसरो क्या है in Hindi | इसरो क्या है इन हिंदी
अंतरिक्ष में मौजूद हमारा सौरमंडल और उसमें मौजूद हमारी पृथ्वी के ऐसे बहुत से रहस्य है जिनसे हम इंसान आज भी अनजान है, इस विशाल आकाश को एक्सप्लोर करने और मानव जीवन को उन्नत करने और बहुत से सवालों के जवाब ढूँढने के लिए, अलग-अलग देश स्पेस विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रहे है और भारत भी उन देशों में से एक है, जिसके पास “इसरो” के रूप में स्पेस संस्था है।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, इसरो के बारे में… इसरो क्या है, ये क्या काम करता है, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की उपलब्धियां और इससे जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में बात करेंगे उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।
इसरो क्या है? Isro Kya Hai in Hindi –

इसरो भारत की एक स्पेस ऑर्गनाइजेशन है, जिसका प्रमुख काम भारत के लिये अंतरिक्ष सम्बधी तकनीक उपलब्ध करवाना व उपग्रहों, प्रमोचक यानों, साउन्डिंग राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास करना शामिल है।
इसरो इस संस्थान का एक संक्षिप्त रूप है जिसका फुल फॉर्म “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन” और अंग्रेजी में “Indian Space Research Organisation” (Isro) होता है।
इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक राज्य के बैंगलौर में है।
इसरो, भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग का एक प्रमुख घटक है, विभाग भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मुख्य रूप से इसरो के तहत विभिन्न केंद्रों या इकाइयों के माध्यम से निष्पादित करता है।
इसरो का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र की विभिन्न आवश्यकताओं के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास और अनुप्रयोग है।
राष्ट्र के इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, इसरो ने संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम संबंधी सेवाओं, संसाधन मॉनीटरिंग और प्रबंधन, अंतरिक्ष आधारित नौसंचालन सेवाओं के लिए प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है, जो आम जन के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हो रहे है।
चाहे मौसम का सटीक अनुमान लगाना हो या चाहे मैप पर किसी जगह को ढूँढना हो अथवा हमारे देश की सुरक्षा से संबंधित जरूरी तकनीक हो, इसरो ने ये सभी चीजें देश को दी है।
संक्षिप्त रूप | इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) |
स्थापना | वर्ष 1962 |
पुराना नाम | 1962, इनकोस्पार के रूप में |
पुनर्गठन | 15 अगस्त 1969 को |
स्वामित्व | भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग |
मुख्यालय | बंगलौर, कर्नाटक |
प्राथमिक लांचपैड | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरीकोटा, आंध्र प्रदेश |
आदर्श वाक्य | मानव जाति की सेवा में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी |
हाल ही की उपलब्धियां | मंगलयान (2013), एकसाथ 104 सेटेलाइट को लांच करना (2017), चंद्रयान-3 (2023) |
इसरो की स्थापना और इतिहास –
साल 1947 को आजादी मिलने के बाद भारत ने बाकी क्षेत्रों के साथ ही स्पेस के क्षेत्र में भी अपनी खुद की टेक्नॉलजी विकसित करने की शुरुआत कर दी थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध छिड़ा हुआ था, यह युद्ध न केवल जमीन पर बल्कि धरती से सैकड़ों किलोमीटर ऊपर स्पेस में भी लड़ा जा रहा था।
इस स्पेस वार में इन दोनों देशों के बीच किसी तरह से अंतरिक्ष में अपनी सेटेलाइट को भेजने की होड़ लगी हुई थी।
इसी रेस में रूस ने वर्ष 1957 में अपना पहला सेटेलाइट “स्पूतनिक-1” लांच किया, भारत ने इस स्पेस रेस को जल्दी ही समझ लिया था, और हमारे देश में भी एक स्पेस एजेंसी बनाने के विचार किया जाने लगा।
फ़ाईनली कुछ सालों बाद वर्ष 1962 में, पमाणु ऊर्जा विभाग “Department of Atomic Energy” के अंतर्गत… ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ संक्षिप्त रूप में “इनकोस्पार” की स्थापना की गई, डॉ. विक्रम ए. साराभाई की दूरदर्शिता पर भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया, जिसके प्रमुख “डॉ होमी जहांगीर भाभा” थे।
इनकोस्पार का पूरा नाम – “Indian National Commitee for Space Research” या संक्षिप्त रूप में “INCOSPAR” होता है।
इनकोस्पार के शुरुआती समय में अमेरिका की स्पेस एजेंसी “नासा” ने बहुत मदद की, नासा ने उस समय कुछ भारतीय वैज्ञानिकों को अपने यहाँ ट्रेनिंग दी और रॉकेट का एक छोटा रूप लांच करने के लिए दिया।
हालांकि यह एक ट्रायल लांचिंग था और इससे कुछ भी बाद नहीं हासिल होने वाला था लेकिन फिर भी यह लांच भारत के लिए बहुत मायने रखता था, क्योंकि इसी आधार पर आगे इनकोस्पार काम करेगी या नही सब कुछ निर्भर था।
उस समय इनकोस्पार के शुरुआती वैज्ञानिक “विक्रम साराभाई” और “डॉ एपीजे अब्दुल कलाम” ने इस रॉकेट को लांच करने के लिए केरल में समुद्र के किनारे स्थित एक गाँव “थुंबा” को चुना।
इसके पीछे कारण यह था कि ये जगह धरती के मैग्नेटिक इक्वेटर के काफी नजदीक था, मैग्नेटिक इक्वेटर पर यदि किसी चुंबक को बीचों बीच बांध कर लटका देते है, तो यह धरती के बिल्कुल क्षैतिज रूप में लटका रहेगा।
उस समय इनकोस्पार के पास केवल एक ही वाहन हुआ करता था, जो कि समान को लाने और ले जाने में व्यस्त रहा करता था।

इसी कारण से जब पहले रॉकेट को लांच करना था तो इसे साइकिल और बैलगाड़ी पर ले जाया गया था, ये तस्वीरें आज के समय में भारतीय स्पेस एजेंसी की आईकॉनिक तस्वीर बन गई।

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बीतते समय के साथ 15 अगस्त 1969 को एक स्वतंत्र संगठन के रूप में इसका पुनर्गठन किया गया और इसे “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन” (इसरो) दिया गया, जिस नाम से हम आज भी जानते है।
सेटेलाइट बनाना, रॉकेट (सेटेलाइट लांच व्हीकल) बनाने की तुलना में थोड़ा आसान होता है, यही कारण है कि हमने सेटेलाइट तो बना ली थी लेकिन रॉकेट बनाने की टेक्नॉलजी विकसित नहीं हो पाई थी।
वर्ष 1975 में भारत ने पहले सेटेलाइट “आर्यभट्ट” को बना लिया था, जिसे रशियन रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेज गया था और इसी तरह 1979 में “भास्कर-1” के नाम से रिमोट सेन्सिंग सेटेलाइट को रशियन स्पेस रॉकेट की मदद से लांच किया।
इस रॉकेट का नाम महान गणितज्ञ “आर्यभट्ट” के नाम पर रखा गया था, हालांकि इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था, लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
1979 में ही भारत ने अपना पहला स्वदेशी रॉकेट SLV-3 टेस्ट किया, लेकिन एक खराब वाल्व के कारण 350 सेकंड में ही यह रॉकेट बंगाल की खड़ी में गिर गया।
इसके बाद 1980 में इसमें कुछ बदलाव करने के बाद इसी रॉकेट की मदद से “रोहिणी-1” सेटेलाइट को सफलतापूर्वक धरती की कक्षा में स्थापित किया।
इस सफलता के भारत विश्व के उन सात देशों में शामिल हो गया जो खुद के दम पर सेटेलाइट लांच करने की टेक्नॉलजी रखते थे।
धीरे-शीरे विश्व को सेटेलाइट की अहमियत का पता चलने लगा और अलग-अलग देश अपनी सेटेलाइट को लांच करने के लिए अमेरिका और रूस के पास जाते थे।
इसके बाद वर्ष 1990 में भारत ने अपने नए रॉकेट PSLV का निर्माण किया हालांकि यह कई बार असफल भी हुआ लेकिन इसकी कमियों को दूर करने के बाद यह इतना सक्सेसफुल हुआ कि इस रॉकेट की मदद से 50 से भी ज्यादा बार में 100+ सेटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में सफलता पूर्वक भेजा गया, जिसमें दूसरे देशों के सेटेलाइट भी शामिल थे।
इसके बाद जिओस्टेशनरी ऑर्बिट में सेटेलाइट लांच करने के लिए GSLV रॉकेट को डेवलप किया गया।
1999 में कारगिल युद्ध के समय अमेरिका ने उसके नेविगेशन सिस्टम “GPS” का एक्सेस देने से मना कर दिया, जिसका कारण यह हुआ कि हमें युद्ध में बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
इसके बाद हमें खुद के नेविगेशन सिस्टम डेवलप करने की जरूरत महसूस हुई और इसके कुछ सालों बाद भारत ने खुद के नेविगेशन सिस्टम “नाविक” (Navic) को डेवलप किया, जिसे अब आम यूजर्स के लिए भी ओपन कर दिया गया है, अब आप गूगल मैप की जगह स्वदेशी ‘Navic’ का प्रयोग कर सकते है।
अभी तक हम केवल धरती के कक्षा में सेटेलाइट भेजने का काम किया था, साल 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 के रूप में पहला “मून मिशन” लांच किया, इस मिशन में सेटेलाइट ने चाँद पर इम्पैक्ट लैन्डिंग की।
यह मिशन बहुत सफल रहा था, कम खर्च में किए गए इस मिशन के द्वारा ही चाँद पर पानी की खोज की गई थी, यह पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ी खोज थी।
इसके बाद साल 2013 में भारत ने मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए मंगलयान को भेजा, बाकी देशों की तुलना में कम खर्च में पहले ही प्रयास में भारत ने मंगल पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैन्डिंग की।
एसके बाद समय आता है एक और नए रिकॉर्ड का, वर्ष 2017 में भारत ने अलग-अलग देशों के 104 सेटेलाइट को एक साथ लांच करके विश्व रिकार्ड कायम किया।
इसके बाद वर्ष 2019 में एक बड़ा मिशन चंद्रयान-2 को लांच किया गया लेकिन लैंडिंग के अंतिम क्षणों में चंद की जमीन से 500 मीटर ऊपर सेटेलाइट से संपर्क टूट गया और यह मिशन फेल हो गया, हालांकि इस मिशन में एक सेटेलाइट भी था जो चाँद के चक्कर लगाता जो कि आज भी अपना काम कर रहा है।
बीच में इसरो के द्वारा अलग-अलग देशों के सेटेलाइट लांच किए जाते रहे है, जो कि इसरो के रेवेन्यू का एक बाद हिस्सा है।
इसके बाद आता है वर्ष 2023 जब एक बार फिर से भारत चाँद पर अपना सेटेलाइट उतारने के लिए चंद्रयान-3 को लांच करता है।
चंद्रयान-3 से सफल लैंडिंग से भारत ने अंतरिक्ष के इतिहास में एक विश्व कर्तिमान रच दिया है, चाँद के दक्षिणी हिस्से पर लैन्डिंग करके, चाँद का ये वो हिस्सा है जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं थी।
राष्ट्र में दिए गए योगदान को ध्यान में रखते हुए इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास में योगदान के लिए वर्ष 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसरो ने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया।
आज के समय में भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है।
इसरो ने उपग्रहों को अपेक्षित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए उपग्रह प्रक्षेपण यान, PSLV और GSLV विकसित किए हैं।
इसरो की रिसर्च फ़ैसिलिटी –
पूरे भारत में अलग-अलग जगहों पर इसरो के रिसर्च केंद्र बनाए गए है, जहां पर भारत के अलग-अलग कोने से वैज्ञानिक तकनीक विकसित करने के लिए अनुसंधान करते है।
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर –
तिरुअनंतपुरम में स्थित, यह इसरो का सबसे बड़ा आधार है, मुख्य तकनीकी केंद्र और एसएलवी-3, एएसएलवी और पीएसएलवी श्रृंखला के विकास का स्थल भी है, यह बेस भारत के थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन और रोहिणी साउंडिंग रॉकेट प्रोग्राम को सपोर्ट करता है, इस सेंटर में जीएसएलवी श्रृंखला भी विकसित किया जाता है।
लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर –
तिरुअनंतपुरम और बंगलौर में स्थित, लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर, प्रक्षेपण वाहनों और उपग्रहों के लिए तरल प्रणोदन नियंत्रण पैकेज (Liquid Propulsion Control Packages), तरल चरणों और तरल इंजन के डिजाइन, विकास, परीक्षण और कार्यान्वयन को संभालता है, इन प्रणालियों का परीक्षण बड़े पैमाने पर महेंद्रगिरि स्थित इसरो प्रोपल्शन कॉम्प्लेक्स में किया जाता है, एलपीएससी, बैंगलोर प्रिसीजन ट्रांसड्यूसर ( Precision Transducers) का भी उत्पादन करता है।
फिजिकल रिसर्च लैब (पीआरएल) –
गुजरात के अहमदाबाद में स्थित यह रिसर्च सेंटर, सौर ग्रह भौतिकी, अवरक्त खगोल विज्ञान, भू-ब्रह्मांड भौतिकी, प्लाज्मा भौतिकी, खगोल भौतिकी, पुरातत्व और जल विज्ञान इस संस्थान में अध्ययन की कुछ शाखाएँ हैं, इसके साथ ही उदयपुर की एक वेधशाला भी इस संस्था के नियंत्रण में आती है।
सेमी कंडक्टर लैबोरेट्री –
सेमीकंडक्टर प्रौद्योगिकी, माइक्रो-इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम और सेमीकंडक्टर प्रोसेसिंग से संबंधित प्रक्रिया प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट का इस लैबोरेट्री में किया जाता है, यह संस्थान चंडीगढ़ में स्थित है।
नेशनल एटमास्फियरिक रडार लैबोरेट्री –
एनएआरएल वायुमंडलीय और अंतरिक्ष विज्ञान में मौलिक और व्यावहारिक अनुसंधान करता है, यह लैबोरेट्री तिरुपति में स्थित है।
स्पेस एप्लिकेशन सेंटर –
अहमदाबाद में स्थित, स्पेस एप्लिकेशन सेंटर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक उपयोग के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है, स्पेस एप्लिकेशन सेंटर में अनुसंधान के क्षेत्रों में भूगणित, उपग्रह आधारित दूरसंचार, सर्वेक्षण, रिमोट सेंसिंग, मौसम विज्ञान, पर्यावरण निगरानी आदि शामिल हैं।
स्पेस एप्लिकेशन सेंटर अतिरिक्त रूप से दिल्ली अर्थ स्टेशन का संचालन करता है, जो दिल्ली में स्थित है और इसका उपयोग सामान्य SATCOM संचालन के अलावा विभिन्न SATCOM प्रयोगों के प्रदर्शन के लिए किया जाता है।
पूर्वोत्तर स्पेस एप्लिकेशन सेंटर –
भारत के पूर्वोत्तर राज्य शिलोंग में स्थित यह सेंटर, रिमोट सेंसिंग, जीआईएस, उपग्रह संचार का उपयोग करके और अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान का संचालन करके विशिष्ट अनुप्रयोग परियोजनाओं को शुरू करके उत्तर पूर्व को विकासात्मक सहायता प्रदान करना इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य है।
इसरो के पूरे हुए मिशन –
23 अगस्त 2023 तक इसरो ने, 124 अंतरिक्ष यान मिशन, 93 लांच मिशन, 15 छात्र उपग्रह, 2 पुनः प्रवेश मिशन, 431 विदेशी उपग्रह और 3 प्राइवेट एंटीटीज के सेटेलाइट्स को लांच कर चुका है।

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इसरो के आने वाले मिशन –
चंद्रयान-3 की तरह ही इसरो के आने वाले समय में बहुत से प्रोजेक्ट है, जो स्पेस को और ज्यादा खोजने और समझने में मदद करेंगे, इसरो के आने वाले कुछ मिशन
आदित्य-एल1 –
इसरो के द्वारा लांच किया जाने वाला आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा, अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है।
यह उपग्रह रियल टाइम में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने के अधिक फायदे पहुंचाएगा, एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को सूर्य को बिना किसी आच्छादन/ग्रहण के लगातार देखने का प्रमुख लाभ है, अंतरिक्ष यान वैद्युत-चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र संसूचकों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात डिवाइसेस ले जाएगा।
गगनयान –
आने वाले समय में गगनयान परियोजना में 3 सदस्यों के चालक दल को 3 दिनों के मिशन के लिए 400 कि.मी. की कक्षा में प्रक्षेपित करके और वैज्ञानिकों को भारतीय समुद्री जल में उतारकर सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन को देखने की परिकल्पना की गई है।
इस परियोजना को अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के पास उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीकों के साथ-साथ आंतरिक विशेषज्ञता, भारतीय उद्योग के अनुभव, भारतीय शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों की बौद्धिक क्षमताओं को ध्यान में रखते एक इष्टतम रणनीति के माध्यम से पूरा करने की योजना है।
एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह एक्सपोसैट –
इसरो द्वारा किया जाने वाला एक्सपोसैट (एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह) चरम स्थितियों में उज्ज्वल खगोलीय एक्स-रे स्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन है।
यह अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक डिवाइस ले जाएगा, जिसमें प्राथमिक डिवाइस पोलिक्स (एक्स-रे में ध्रुवणमापी उपकरण) खगोलीय मूल के 8-30 केवी फोटॉन के मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में ध्रुवणमापी प्राचल (ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण) को मापेगा।
एक्स.एस.पी.ई.सी.टी. (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) नीतभार 0.8-15 केवी की ऊर्जा सीमा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी देगा, ये जानकारियाँ हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाली है।
नासा-इसरो सार (एन.आई.सार) उपग्रह –
नासा और इसरो के द्वारा सम्मिलित रूप से विकसित की जा रही एक निम्न भू कक्षा (एल.ई.ओ.) वेधशाला है, एन.आई.सार 12 दिनों में पूरे ग्लोब का मानचित्र तैयार करेगा और पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ के द्रव्यमान, वनस्पति बायोमास, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भूस्खलन भूजल और भूकंप, सूनामी और ज्वालामुखी सहित अन्य प्राकृतिक खतरों को समझने के लिए स्थानिक और अस्थायी रूप से ज्यादा एक्यूरेट डाटा प्रदान करेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल –
इसरो का पूरा नाम क्या है?
इसरो का पूरा नाम “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन”है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक किसे माना जाता है?
डॉ.विक्रम ए. साराभाई को भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का संस्थापक जनक माना जाता है, इन्हीं की देखरेख में ‘इनकोस्पार’ की शुरुआत हुई।
इसरो का गठन कब हुआ?
वर्ष 1962 को इनकोस्पार के रूप भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई, इसके बाद 15 अगस्त 1969 को इसका नाम बदलकर इसरो रख दिया और इसे एक स्वतंत्र संस्था के रूप में स्थापित किया गया।
अंतरिक्ष विभाग का गठन कब हुआ?
सन् 1972 में भारतीय अंतरिक्ष विभाग और अंतरिक्ष आयोग की स्थापना हुई, 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर स्थापित किया गया।
इसरो का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
इसरो का प्रमुख उद्देश्य, देश की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा विभिन्न राष्ट्रीय आवश्यकताओं में उनका उपयोग करना है।
इसरो के उपग्रह कहाँ बनाए जाते है?
इसरो के उपग्रहों को यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) में बनाया जाता है।
प्रमोचन यान कहा बनाए जाते है?
इसरो के राकेट/ प्रमोचन यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं।
राकेट का प्रमोचन कहाँ से किया जाता है?
रॉकेट प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है, तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है।
रॉकेट प्रमोचन के लिए थुंबा गाँव को ही क्यों चुना गया?
पृथ्वी की भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा “थुम्बा” गाँव से हो कर गुज़रती है।
इसरो का पहला रॉकेट कौन सा था?
इसरो के द्वारा लांच किया गया पहला रॉकेट, नैकी-अपाचे, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से प्राप्त किया गया था, जिसे 21 नवंबर, 1963 को उस समय के “इनकोस्पार” (इसरो का पुराना नाम) के द्वारा लांच किया गया।
इसरो के कितने केंद्र है?
देश भर में इसरो के छह प्रमुख केंद्र तथा कई अन्य एजेंसी, सुविधाएँ, इकाइयाँ और प्रयोगशालाएँ मौजूद हैं।
भारत का पहला प्रक्षेपण यान कौन सा था?
भारत का पहला प्रक्षेपण उपग्रह का नाम SLV-3 (एसएलवी-3) था।
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Summary –
जिस तरह से हमने चंद्रयान-3 को सफल होते देखा है, आने वाले समय में इसरो और भी नई बुलंदियों को छूने वाला है।
भारत के इस स्वर्णिम काल में हम एक नए स्पेस युग को देखेंगे जहां मानव अपनी धरती को छोड़कर दूसरे ग्रह की तलाश करेंगे, नए ठिकाने की खोज करेंगे और इसरो का योगदान इसमें मील का पत्थर साबित होगा।
तो दोस्तों, इसरो क्या है? इसके बारे में हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताये नीचे कमेन्ट बॉक्स में और यदि आपके पास इस टॉपिक से जुड़ा कोई भी सवाल या सुझाव है तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂
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