Jivashm Indhan Kya Hai | Jivashm Indhan Kise Kahate Hain | जीवाश्म ईंधन किसे कहते है | Jivashm Indhan Ki Urja Ka Vastavik Srot Hai | Jivashm Indhan Ki Kamiyan Kya Hai | Jivashm Indhan Hai | Jivashm Indhan Ki Kya Haniyan Hai | जीवाश्म ईंधन की ऊर्जा का वास्तविक स्रोत है
तेल और कोयले की खोज ने मानव जीवन के विकास में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, धरती के अंदर से निकलने वाले ये मैटेरियल “जीवाश्म ईंधन” कहलाते है, जीवाश्म ईंधन के फायदे तो है लेकिन वहीं नुकसान भी बहुत सारे है जिसके बारे में हम सभी को पता होने चाहिए।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, जीवाश्म ईंधन के बारे में, जीवाश्म ईंधन क्या होता है, इसके क्या फायदे और नुकसान है, जीवाश्म ईंधन कितने प्रकार के होते है? बात करेंगे इन सभी टॉपिक पर, उम्मीद करता हूँ आपको यह आर्टिकल पसंद आएगा।
जीवाश्म ईंधन क्या है Jivashm Indhan Kya Hai –

ऐसे ईंधन जिनकी उत्पत्ति करोड़ों वर्ष पूर्व जीव का एवं वनस्पतियों के उच्च दाब और ताप में पृथ्वी के अंदर दबने से हुई है, जीवाश्म ईंधन कहलाते हैं, उदाहरण के तौर पर कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।
जीवाश्म ईंधन एक हाइड्रोकार्बन युक्त तत्व है जैसे – कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस, जो मृत पौधों और जानवरों के अवशेषों से पृथ्वी की परत में प्राकृतिक रूप से बनता है जिसे ईंधन के रूप में निकालने के बाद फ़िल्टर किया जाता है और फिर ऊष्मा के लिए जलाया जाता है।
आमतौर पर जीवाश्म ईंधन को सीधे उपयोग के लिए गर्मी प्रदान करने के लिए, जैसे – खाना पकाने या गर्म करने के लिए, बिजली इंजनों जैसे – मोटर वाहनों में आंतरिक दहन इंजन के माध्यम से यांत्रिक ऊर्जा पाने के लिए या बिजली उत्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
कुछ जीवाश्म ईंधन ऐसे भी होते है जिनको सीधे तौर पर प्रयोग करने से पहले फ़िल्टर किया जाता है, जैसे कच्चे तेल को जलाने से पहले केरोसिन, गैसोलीन और प्रोपेन जैसे डेरिवेटिव में रिफाइन किया जाता है।
जीवाश्म ईंधन का निर्माण पृथ्वी के अंदर लाखों सालों तक दफन मृत जीवों के अवायवीय अपघटन से होती है, जिसमें प्रकाश संश्लेषण द्वारा निर्मित कार्बनिक अणु मौजूद रहते है।
आमतौर पर किसी भी वनस्पति या जीवाश्म के उच्च-कार्बन जीवाश्म ईंधन में रूपांतरण के लिए आमतौर पर लाखों वर्षों की भूवैज्ञानिक प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
वर्तमान में हम जो भी जीवाश्म ईंधन प्रयोग करते है धरती के अंदर वह लाखों करोड़ों साल पुराना है।
जीवाश्म ईंधन के फायदे –
जीवाश्म-ईंधन उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक एकीकृत है और भारी सब्सिडी देता है, इस संक्रमण से महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
जीवाश्म ईंधन की खोज से ही मनुष्य इतनी प्रगति कर पाया है, बिना इसके हमारा विज्ञान की दुनिया में इतनी प्रगति करना बहुत मुश्किल होता।
कुछ जीवाश्म ईंधन जैसे – कोयला, का प्रयोग सीधे धरती से निकलकर प्रयोग में लाया जाता है, ये आमतौर पर देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान देते है।
सभी जीवाश्म इंधनों में प्राकृतिक गैस का प्रयोग आज के समय में एलपीजी के रूप में आम लोगों के द्वारा भी काफी ज्यादा किया जाता है।
पारंपरिक लकड़ी के ईंधन की तुलना में प्राकृतिक गैस और कोयले में ज्यादा ऊष्मा और स्वास्थ्य के लिए कम नुकसानदेह है।
लकड़ी पर खाना बनाने या उद्योगों में इसके इस्तेमाल पर वनों का ज्यादा कटाव होता, जिससे पर्यावरण पर सीधा प्रभाव देखने को मिलता।
Jivashm Indhan Kya Hai | Jivashm Indhan Kise Kahate Hain | जीवाश्म ईंधन किसे कहते है | जीवाश्म ईंधन क्या है
जीवाश्म ईंधन के प्रकार –
प्रकृति में पाए जाने फॉसिल फ्यूल निम्न प्रकार के होते है –
कोयला (Coal) –
‘कोयला’ ओर ‘कोयल’ दोनों संस्कृत के ‘कोकिल’ शब्द से निकले हैं, आमतौर पर लकड़ी के अंगारों को पानी डाल कर बुझाने से जल रहे बचे हुए अंश को ‘कोयला’ (Coal) कहते है, सही रूप में इस प्रकार के कोयले को लकड़ी का कोयला या काठ कोयला कहते है।
यह एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यन्त महत्वपूर्ण ईंधन की श्रेणी में आता है।
कोयले का एक दूसरा रूप भी है जिसे जमीन के अंदर से खदानों की मदद से निकाला जाता है, इस प्रकार के कोयले को ‘पत्थर का कोयला’ या केवल ‘कोयला’, कहते हैं।
इसके अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार का भी कोयला होता है जो हड्डियों को जलाने से प्राप्त होता है, इसे ‘हड्डी का कोयला’ या ‘अस्थि कोयला’ कहा जाता है।
हमारी जरूरतों में प्रयोग होने वाली कुल ऊर्जा का 35% से 40% भाग कोयलें से प्राप्त होता हैं, कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त होते है।
आमतौर पर कोयला चार प्रकार का होता है, अलग-अलग प्रकार के कोयले का प्रयोग अलग कामों जैसे – घरेलू कामों, रासायनिक क्रियाओं और उद्योग धंधों में उपयोग होता है।
अपनी खसियतों के कारण कोयले का विशेष उपयोग ईंधन के रूप में होता है, कोयले की आँच तेज और लौ साफ होती है तथा कालिख या कजली बहुत कम बनती है, कोयले के जलने से धुँआ कम या बिल्कुल नहीं होता है।
इसके अलावा कोयले में गंधक बहुत कम होता है और वह आग जल्दी पकड़ लेता है। कोयले में राख कम होती है और इसे एक जगह से दूसरे जगह ले जाना बहुत सरल होता है।
इसके अलावा कोयले का उपयोग रबर के सामानों, विशेषत: टायर, ग्रामोफोन और फोनोग्राफ के रेकार्ड, ट्यूब और जूते के निर्माण में तथा पेंट और एनैमल पालिश, कार्बन, जिल्द बाँधने की दफ्ती, कागज, टाइपराइटर के रिबन, चमड़े, पेंसिल और मुद्रण की स्याही के निर्माण में होता है।
कोयले का प्रयोग करके अनेक रसायन भी प्राप्त या तैयार किए जाते है, कोयले से कोयला गैस भी तैयार होती है, जो प्रकाश और ऊष्मा प्राप्त करने के लिए वर्तमान में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।
कोयले की एक खास विशेषता रंगों और गैसों का अवशोषण है, इसलिए इसका उपयोग अनेक पदार्थों, जैसे मदिरा, तेलों, रसायनकों, युद्ध और अश्रुगैसों आदि के शोधन के लिये तथा अवांछित गैसों के प्रभाव को कम या दूर करने के लिये मुखौटों (mask) में किया जाता है, तथा बारूद बनाने के लिए कोयला एक महत्वपूर्ण घटक है।
इन विशेष कामों के लिये एक विशेष प्रकार का ऐक्टिवेटेड कोल तैयार किया जाता है, जिसकी अवशोषण क्षमता बहुत अधिक होती है।
कच्चा तेल (Crued Oil) –
पेट्रोलियम या कच्चा तेल या शिलारस आज के समय में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी पदार्थ हैं, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में बहुत ज्यादा होता है।
शिलारस वास्तव में हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है और इसका निर्माण भी कोयले की तरह वनस्पतियों के पृथ्वी के नीचे दबने तथा कालांतर में उनके ऊपर उच्च दाब तथा ताप के आपतन के कारण हुआ।
प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पेट्रोलियम को अपरिष्कृत तेल (Crude Oil) कहते हैं जो काले रंग का गाढ़ा द्रव होता है।
क्रूड ऑइल के प्रभाजी आसवन (फ्रैक्शनल डिस्टिलेशन) से केरोसिन, पेट्रोल, डीज़ल, प्राकृतिक गैस, वेसलीन, तारकोल ल्यूब्रिकेंट तेल जैसे द्वितीयक उत्पाद प्राप्त होते है।
क्रूड ऑइल गाढ़े काले रंग का द्रव होता है, इसमें कार्बन की बहुलता होती है, कार्बन की खासियत यह होती है कि इनमें मौजूद हाइड्रोजन और प्रांगार के अणु एक दूसरे से विभिन्न श्रृंखलाओं में बंधे होते हैं।
कार्बन की ये श्रृंखलाएं तरह-तरह की होती हैं, यही श्रृंखलाएं विभिन्न प्रकार के तेल उत्पादों का स्रोत होती हैं।
इनकी सबसे छोटी श्रृंखला मिथेन नामक प्रोडक्ट का आधार बनती है। इनमें लंबी श्रृंखलाओं वाले उदप्रांगारों ठोस जैसे कि मोम या टार नामक उत्पाद का निर्माण करते हैं।
जब पृथ्वी से तेल खोद कर निकाला जाता है उस वक्त अपरिष्कृत तेल (क्रूड ऑयल) ठोस रूप में होता है।
इससे तेल के विभिन्न रूप पाने के लिए अपरिष्कृत तेल में मौजूद कार्बन के विभिन्न चेन को अलग करना पड़ता है, कार्बन के विभिन्न चेनों को अलग करने की प्रक्रिया आसवन की क्रिया कहलाती है।
आमतौर पर इसे हम शोधन प्रक्रिया के नाम से जानते हैं, यह शोधन प्रक्रिया शोधन कारखानें (रिफाइनरीज) में होती है।
एक तरह से यह शोधन बेहद आसान भी होता है और मुश्किल भी, जब क्रूड ऑयल में पाए जाने वाले कार्बन के बारे में पता हो तो यह प्रक्रिया बहुत सरल होती है और जब कच्चे तेल में मौजूद कार्बन के बारे में कोई जानकारी नहीं होती तो शोधन प्रक्रिया मुश्किल होती है।
अलग-अलग प्रकार के कार्बन का क्वथनांक अलग-अलग होता है, इस तरह आसवन की प्रक्रिया से उन्हें आसानी से अलग किया जा सकता है, तेल शोधक कारखाना की पूरी प्रक्रिया में यह एक महत्वपूर्ण चरण होता है।
अब अपरिष्कृत तेल को अलग-अलग तापमान पर गर्म करके वाष्प एकत्रित करके तथा उसे दोबारा ठंढा करके कार्बन की अलग-अलग चेन निकाल लिया जाता है।
तेल शोधक कारखाना (ऑयल रिफाइनरी) में शोधन का यह सबसे सामान्य और पुराना तरीका है, उबलते तापमान का उपयोग करने वाली इस विधि को प्रभाजी आसवन कहते हैं।
कच्चे तेल के आसवन का एक तरीका यह भी होता है कि कार्बन की एक लंबी चेन को जैसे का तैसा निकाल लेने के बजाए उसे छोटी-छोटी चेन्स में तोड़कर निकाल लिया जाता है, इस प्रक्रिया को रासायनिक प्रसंस्करण (Chemical Processing) कहते हैं।
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प्राकृतिक गैस (Natural Gas) –
प्राकृतिक गैस (Natural gas) कई गैसों का मिश्रण है जिसमें मुख्यतः मिथेन होती है तथा 0 से 20% तक अन्य उच्च हाइड्रोकार्बन (जैसे इथेन) गैसें होती हैं। प्राकृतिक गैस ईंधन का प्रमुख स्रोत है। यह अन्य जीवाश्म ईंधनों जैसे – कच्चे तेल, कोयले इत्यादि, के साथ पायी जाती है।
प्राकृतिक गैस करोडों वर्ष पुर्व धरती के अन्दर जमें हुये मरे हुये जीवो के सड़े-गले पदार्थ के अपघटन से बनती है।
ये ईंधन गैसीय अवस्था मे पाई जाती है, प्राकृतिक गैस सामान्यतः मेथेन, एथेन, प्रोपेन, ब्युटेन, पेन्टेन का मिश्रण है, इसमे मिथेन 80 से 90% तक पायी जाती है, इसके अलावा इसमें कुछ अशुद्धियाँ भी पायी जाती है, जैसे – सल्फर और जल वास्प, आदि।
प्राकृतिक गैस का उपयोग एलपीजी के रूप में घरेलु गैस उपयोग में, वाहनों में सीएनजी ईंधन के रूप में, कारखानों में ईंधन के रूप में, खाद निर्माण में और विद्युत बनाने में किया जाता है।
प्रकृति में प्राकृतिक गैस का निर्माण मुख्यतः दो तरह से होता है 1. जैव जनित और 2. ऊष्मा जनित।
जैव जनित (बयोजेनिक) गैस दलदल, bogs, landfills और उथले तलछट में मिथेनोजेनिक जीवों के द्वारा बनाई गई है। मिथेनोजेनिक गैस पृथ्वी में गहरी, अधिक से अधिक तापमान और दबाव में दफन जैविक चीजों के अपघटन से बनती है।
प्राकृतिक गैस 19 वीं सदी में, प्राकृतिक गैस आमतौर पर तेल उत्पादन का प्रतिफल (बाई प्रोडक्ट) के रूप में प्राप्त हुई थी, 19 वीं सदी और 20 वीं सदी में, इस तरह के अवांछित गैस आमतौर पर तेल क्षेत्रों में ही जला दिया जाता था।
वर्तमान में तेल निकलते समय निकलने वाली गैस को एक बड़े रिजर्वायर में इकट्ठा कर लिया जाता है, जिसके बाद इसे फ़िल्टर करके पाइपलाइन के माध्यम से उपभोक्ता तक भेजा जाता है।
सभी जीवाश्म इंधनों में प्राकृतिक गैस ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जो सबसे कम प्रदूषण या नहीं के बराबर करता है, इसका प्रयोग आज के समय में एलपीजी के रूप में आम जनता तक भी काफी ज्यादा किया जाता है।
जीवाश्म ईंधन के नुकसान –
जीवाश्म ईंधन को जलाने की प्रक्रिया रासायनिक प्रक्रिया होती है, इसका एक बार उपयोग करने के पश्चात इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसके निर्माण के लिए बहुत अधिक तापमान और दाब की आवश्यकता होती है।
वर्तमान में इस ईंधन को मानव द्वारा बना पाना भी असंभव है, क्योंकि यह ईंधन प्राकृतिक रूप से बनता है और इसके निर्माण में लाखों वर्षों का समय लग जाता है।
2019 में, दुनिया में 84% प्राथमिक ऊर्जा खपत और 64% बिजली जीवाश्म ईंधन से थी, बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन जलाने से गंभीर पर्यावरणीय क्षति होती है।
मानव गतिविधि से उत्पन्न 80% से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2 ) मात्र में लगभग 35 बिलियन टन प्रति वर्ष, जीवाश्म ईंधन के जलाने से आता है, जबकि 4 बिलियन जंगलों को काटकर कृषि योग्य भूमि बनाने की वजह से होता है।
पृथ्वी पर प्राकृतिक प्रक्रियाएँ, अधिकांशतः हानिकारक गैसों का समुद्र और जंगलों द्वारा अवशोषण कर लिया जाता है, लेकिन आज के समय में प्रदूषण में इतनी वृद्धि हो चुकी है कि प्राकृतिक रूप से इसका केवल एक छोटा सा भाग ही खत्म हो पता है।
इसी कारण से प्रति वर्ष कई अरब टन वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड की शुद्ध वृद्धि हो रही है।
जीवाश्म ईंधन को जलाने से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्रोत है जो ग्लोबल वार्मिंग और महासागर के अम्लीकरण का कारण बनता है
वायु प्रदूषण से होने वाली अधिकांश मौतें जीवाश्म ईंधन कणों और हानिकारक गैसों के कारण होती हैं।
अनुमान है कि इसकी लागत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 3% से अधिक है और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने से हर साल लाखों लोगों की जान बच सकेगी।
जलवायु संकट, प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाले अन्य नकारात्मक प्रभावों की मान्यता ने व्यापक नीति परिवर्तन और टिकाऊ ऊर्जा के पक्ष में उनके उपयोग को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यकर्ता आंदोलन को जन्म दिया है।
आने वाले समय में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के साथ-साथ पेरिस जलवायु समझौते के रूप में अंतर्राष्ट्रीय नीति तैयार की गई, जिसे वैश्विक स्तर पर इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, ताकि आसानी से सस्टेनेबल एनर्जी रिसोर्सेज की तरफ बढ़ा जा सके।
2021 में, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने निष्कर्ष निकाला कि यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचाने और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करना चाहते हैं तो कोई नई जीवाश्म ईंधन को निकालने की नई खदानों और इसके खोज पर रोक लगाई जानी चाहिए।
जीवाश्म ईंधन की एक सबसे बड़ी कमी यह है कि इसका पुनः निर्माण कर पाना लगभग असंभव है क्योंकि जीवाश्म ईंधन का निर्माण लाखो वर्षों तो जमीन के अंदर अधिक ताप और दाब से हुआ है और उतने बड़े क्षेत्र का लाखों वर्षों तक अधिक तापमान और दाब में रखने में अधिक पैसे लगेंगे, जो कहीं से भी इकोनोमिकल नहीं है।
इसके स्थान पर यदि अक्षय ऊर्जा का उपयोग किया जाता है तो उसमें इससे कम लागत में ऊर्जा मिल जाती है, अक्षय ऊर्जा को भविष्य कहा जा सकता हुआ, इससे प्रदूषण न के बराबर होता है।
ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग वर्तमान में बहुत महत्वपूर्ण कार्यों में किया जाता है। इस कारण इसका संरक्षण करना अधिक आवश्यक है।
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Summary –
प्रकृति में मौजूद जीवाश्म ईंधन की मात्रा निश्चित है, कुछ ईंधन जो आने वाले कुछ सौ वर्षों में खत्म हो जाएंगे, इसलिए यह जरूरी है कि हम इनकी जगह ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों जैसे – सोलर एनर्जी, की तरफ जाएं।
सुर ऊर्जा का न सिर्फ असीमित भंडार है बल्कि यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित भी है, तभी हम आने वाले समय में धरती को सुरक्षित रख पाएंगे।
तो दोस्तों, जीवाश्म ईंधन के बारे में यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स में यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई भी सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂
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