Rus Ki Kranti 1917【रूस की क्रांति】कारण, परिणाम और प्रभाव

Rus Ki Kranti | रूस की क्रांति कब हुई थी | रूस की क्रांति के कारण | प्रथम विश्वयुद्ध का रूस की क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा | रूस की क्रांति के प्रश्न उत्तर | रूस की क्रांति के परिणाम

मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को उसका मूर्त रूप पहली बार रूसी क्रान्ति ने प्रदान किया, रूस की क्रान्ति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया, जिसे आज हम अपने आसपास भी महसूस करते है।

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, रूस की क्रांति के बारे में… इसके क्या कारण थे, इस क्रांति के पश्चात क्या परिणाम और प्रभाव देखने को मिले? उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।

रूस की क्रांति –

Rus Ki Kranti
1917 Rus Ki Kranti | 1917 रूस की क्रांति

सन 1917 की रूस की क्रान्ति बीसवीं सदी में विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, इस घटना ने रूस के ऊपर दूरगामी प्रभाव छोड़े जिसके बारे में हम चर्चा करेंगे।

रूसी क्रान्ति दो भागों में हुई थी, पहली क्रांति मार्च 1917 में, तथा दूसरी अक्टूबर 1917 में। पहली क्रांति के फलस्वरूप सम्राट को अपना पद छोड़ने के लिये विवश होना पड़ा तथा एक अस्थायी सरकार का निर्माण हुआ।

और अक्टूबर की क्रान्ति का परिणाम यह हुआ कि अस्थायी सरकार को हटाकर बोल्शेविक सरकार (कम्युनिस्ट सरकार Communist Goverment) की स्थापना हुई।

रूस की क्रान्ति के परिणामस्वरूप रूस से ‘ज़ार’ का स्वेच्छाचारी शासन समाप्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई।

कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को मूर्त रूप पहली बार रूसी क्रान्ति ने ही प्रदान किया, रूसी क्रान्ति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया।

रूस की क्रांति विश्व की उन घटनाओं में शामिल है, जिसने दुनिया के वर्तमान स्वरूप को जन्म दिया है, जब हम पूंजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद की बात करते है, तो हम इनमें एक संघर्ष देखते है, इन विचारों को एकर दुनिया दो भागों में बँटी हुई है।

बहुत से लोग समाजवाद को मानते है तो बहुत से लोग पूंजीवाद को मानते है, समाजवाद का प्रसार रूसी क्रांति की ही देन है।

Rus Ki Kranti In Hindi –

रूस की क्रांति ने राष्ट्रवाद को जन्म दिया और ये बताया कि कैसे निरंकुश शाशन देश को बर्बाद कर सकता है।

इसमें एक बड़ी भूमिका बौद्धिक विचारों ने भी निभाई, 1789 के फ्रांस की क्रांति से उत्पन्न विचारों यूरोप सहित दुनिया के अन्य देशों को भी प्रभावित किया, जो कहीं न कहीं रूस में बहुत सालों बाद भी एक दूसरे को प्रभावित करते रहे।

रूसी क्रांति ने न सिर्फ जारशाही, निरंकुशता व स्वेच्छाधारी राजतन्त्र को खत्म किया, बल्कि सामंतवादियों और पूंजीवादियों का भी दमन किया तथा समाज व दुनिया को समाजवाद की विचारधारा दी, मजदूरों और कृषकों की महत्ता को स्थापित किया।

वास्तव में क्रांति के बाद समाजवाद का इस गति से विकास हुआ 1950 तक आधी दुनिया या यूं कहें कि पूरी दुनिया में या तो इसके समर्थक थे या फिर विरोधी।

1917 की क्रांति से पहले रूस में स्वेच्छाचारी शाशन चलता था, स्वेच्छाचारी शाशन का मतलब वहाँ पर लंबे समय से एक राजवंश का शाशान चाल रहा था, इस राजवंश के राजा को ‘जार’ कहा जाता था।

क्रांति से पहले रूस में शाशन की पद्धति परंपरागत रूप से चली आ रही थी, लगभग 300 वर्षों से रोमनोव वंश यहाँ पर शाशन कर रहा था, इस शाशन की आड़ में इतने सालों से जनता का शोषण किया जा रहा था।

अपनी शक्ति के दौरान जार प्रजा पर निरंकुश रूप से शाशन किया करते थे, पूरी शक्ति पर इनका नियंत्रण होता था।

मजदूरों और किसानों के ऊपर बहुत ही दयनीय तरीके से शोषण किया जाता है, आम जनता से कर की वसूली की जाती थी साथ ही उनके ऊपर कई तरह के अत्याचार भी किए जाते थे।

क्रांस की तरह ही यहाँ भी समाज तीन वर्गों में बँटा हुआ था, पहले वर्ग में सामंत और पादरीयों का प्रभुत्व था, दूसरे वर्ग में व्यापारी जमींदार और पूंजीपति शामिल थे, इसे माध्यम वर्ग में कहा जाता था और तीसरे वर्ग में कृषक, मजदूर आदि शामिल थे।

इसमें तीसरे वर्ग यानि मजदूरों का शोषण पहले वर्ग और दूसरे वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता था।

इसमें विशेष बात यह थी सभी वर्ग एक दूसरे को अलग मानते थे, इनमें सद्भावना जैसी कोई चीज नहीं थी, मजदूरों के रहने के लिए अलग जगह और आने जाने के लिए सड़कों तक अलग होती थी, यह समाज के बीच असमानता की एक गहरी खाई को दिखाता है।

रूस में औद्योगिक क्रांति हालांकि देर से हुई, लेकिन औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप बड़े-बड़े कारखाने और उद्योग स्थापित हुए, लोगों का पलायन शहरों की तरफ हुआ, साथ ही उनके सोच में भी बदलाव हुआ, श्रमिक संगठनों की स्थापना हुई जो आगे चलकर क्रांति में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

रूस की क्रांति के कारण Rus Ki Kranti Ke Karan –

किसी भी क्रांति का बीज एक दिन में नहीं पनपता, सालों पहले से इसकी पृष्ठभूमि तैयार होनी शुरू हो जाती है, लोगों के अंदर गुस्से की भावना ज्वालामुखी के रूप में दाबी रहती है और एक दिन ऐसा भी आता है कि गुस्से का यह ज्वालामुखी अपनी पूरी शक्ति से फूट पड़ता है।

मजदूरों का शोषण –

रूस में किसानों की संख्या सर्वाधिक थी, लेकिन अधिकतर खेत या तो सामंतों के पास (67 प्रतिशत) या फिर चर्च के पास (13 प्रतिशत) थे, जमीनों का अभाव उन्हें कृषक और मजदूर बनने पर मजबूर कर दिया।

वर्ष 1861 में दास प्रथा का अंत हो जाने के बावजूद वास्तविक रूप में तत्कालीन समय में मौजूद था।

औद्योगीकरण ने पूंजीवाद को बढ़ावा दिया, जिसका मूल लक्ष्य सिर्फ लाभ कमाना था, ऐसे में श्रमिकों का खूब शोषण किया गया, किसब पहले से ही टैक्स के बोझ से दबा था, यहाँ भी उनका खूब शोषण किया गया, न तो उनके वेतन निश्चित थे और कार्य करने का समय निर्धारित था।

प्रजातान्त्रिक दल ने मजदूरों की उग्र भावना को भांप कर उन्हें संभावित क्रांति के लिए तैयार किया।

समाजवादी भावना का प्रसार –

समाजवाद रूस की क्रांति का एक बड़े प्रभाव के रूप में देखने को मिलता है, इस क्रांति में समाजवाद की भावना के प्रसार ने रूस में दो संगठनों को जन्म दिया –

समाजवादी क्रांतिकारी दल – इसने किसानों को एकजुट किया।
समाजवादी प्रजातान्त्रिक – जिसने मजदूरों को संगठित किया।

माध्यम वर्ग का बौद्धिकों की भूमिका –

जिस तरह फ्रांस की क्रांति में दार्शनिक व शिक्षितों का एक बड़ा योगदान था, उसी तरह इन्होंने रूस की क्रांति की भावना को बल दिया।

शिक्षित वर्गों द्वारा विभिन्न दार्शनिकों के विचारों का अध्ययन कर आम मजदूर जनों तक प्रसारित किया गया, जिसने सबसे ज्यादा युवाओं को आकर्षित किया।

शिक्षा ने इन्हें यह जानने का मौका दिया दिया कि जार निकोलस की शासन व्यवस्था कितनी अव्यवस्थित है और उनका देश कितनी समस्याओं से जूझ रहा है।

लियो टॉलस्टाय की प्रसिद्ध पुस्तक ‘War and Peace’ ने रूसी नागरिकों की भावनाओं को मजबूती प्रदान किया तो गोर्की जैसे विचारकों ने जनता को जागरूक करने का काम किया।

प्रसिद्ध विचारक ‘मैक्सिम गोर्की’ ने प्रसिद्ध पुस्तक ‘द पहर’ के द्वारा रूस में राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार किया।

विचारकों तथा लेखों ने बताया कि जो समाजवाद है जो साम्यवाद है वही मूल विचार है, पूंजीवाद देश के लिए, समाज के एक वर्ग के लिए खितन खतरनाक है, इसके बारे में लोगों को जागरूक किया।

अगर किसी समाज को बेहतर बनाता है तो उसमें समाजिक असमानता और भेदभाव को खत्म करना होगा।

पार्टी की स्थापना –

RSDP रसियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी – 1898, 1898 को लेनिन और कार्ल मार्क्स की विचारधारा को आधार बनाकर पार्टी बनाई गई, जिसमें मजदूरों की सुरक्षा को मुख्य उद्देश्य में रखते हुए बनाया गया।

बाद में वर्ष 1903 में यह पार्टी दो भागों बोल्शेविक (बहुमत/मेजोरिटी) और मेन्सविक (माइनोरिटी) में बँट गई।

मेन्सविक का कहना था कि क्रांति में समाजवादी लक्ष्य प्रक्रिया और विचारधारा होनी चाहिए, जबकि बोल्शेविक पार्टी का कहना था कि सत्ता मजदूरों के पास होनी चाहिए किसी अन्य शाशन प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है।

तत्कालीन घटनाएं –

इसी बीच 1904-05 में कोरिया प्रायद्वीप और मंचूरिया पर नियंत्रण को लेकर तनाव बढ़ा इस तनाव में एक तरफ जापान और दूसरी तरफ रूस और चीन थे।

इसमें रूस की बुरी तरह से हार होती है, रूस जो कि क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व का सबसे बाद देश है, वह एक छोटे से देश जापान से हार जाता है, इस हार लोगों के अंदर इस भावना को जागृत किया कि देश की शाशन शक्ति सही हाथों में नहीं है।

इसके कारण 1905 में एक छोटी सी क्रांति होती है जिसमें राज्य के ऊपर एक दवाब डाला जाता है, इसमें मजदूरों ने अपनी स्थिति में सुधार के लिए आंदोलन किया।

किंग जार ने आंदोलन को कुचलने के लिए गोली चलवा दिया, रविवार के दिन हुई इस घटना को ब्लडी संडे के नाम से जाना जाता है, इस घटना के बाद पूरे देश में विद्रोह प्रारंभ हो जाता है।

राजा जार को अपनी सत्ता छिन लिए जाने का डर उत्पन्न हो गया जिसकी वजह से राजा ने एक ऑक्टोबर घोषणापत्र जारी किया और कहा कि हम ‘संसद’ (DUMA) की स्थापना करेंगे।

लेकिन जार ने इसमें एक चालाकी किया कि उच्च वर्ग के लोग ही इसके सदस्य कैबिनेट और पीएम पद पर मौजूद होंगे।

इसका कारण यह हुआ कि ड्यूमा पर नियंत्रण जार का ही था और वह इसे इच्छानुसार भंग कर देता था, जिससे वास्तविक लोकतंत्र कभी स्थापित ही नहीं हो पाया।

इसके बाद 1906-11-में ड्यूमा पीएम ‘स्टोलीपिन’ जिन्होंने किसानों के हित में कई निर्णय लिए थे, गद्दी जाने के डर से उनकी जार के द्वारा हत्या करवा दी जाती है।

प्रथम विश्व युद्ध –

प्रथम विश्व युद्ध के प्रारंभ होते ही मित्र राष्ट्रों ने फ्रांस तथा इंग्‍लैण्‍ड़ के पक्ष में लाखों सैनिक युद्ध में उतार दिए गए।

रूसी सेना ने युद्ध के प्रारंभ में वीरता एंव शौर्य का प्रदर्शन किया, लेकिन हथियार तथा युद्ध के सामानों की कमी ने पराजय की शृंखला शुरू कर दी, जिसके लिए भ्रष्ट तथा निकम्मी राजशाही सरकार जिम्मेदार थी।

प्रथम विश्व युद्ध के कारण अत्यधिक संख्या में सैनिक भर्ती किए गए लेकिन इनकी सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया, न ही वेतन, पोशाक और न हथियार उचित रूप से दिए गए, ज्इसके कारण सैनिकों के बीच असंतोष बढ़ा।

सेना में ज्यादातर किसानों व मजदूरों के संबंधी थे, जनके मारे जाने के कारण इनमें घोर रोष उत्पन्न हुआ।

युद्ध की सामग्री का निर्माण व आपूर्ति निश्चित करने के लिए अन्य उद्योगों को बंद कर दिया गया जिससे कई मजदूर बेरोजगर हो गए और आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।

इसी दौरान 1919-17 मीन भीषण अकाल भी पड़ा, निम्न वर्ग के लोग पहले से ही परेशान थे, युद्ध ने भूखमरी की स्थिति पैदा कर दी, अंततः क्रांति के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा।

युद्ध के दौरान 20 लाख सैनिक और 80 लाख नागरिकों की मृत्यु हो गई बढ़ते समय के साथ रूस की आर्थिक स्थिति और खराब होती गई, 1917 तक भुखमरी अपने चरम सीमा पर थी।

8 मार्च,1917 को पहली क्रांति होती है जिसमें 5000 मजदूरों ने अपनी दयनीय स्थिति के कारण हड़ताल कर दिया।

पेट्रोग्राड की सड़कों पर मजदूरों ने स्त्रियों को साथ लेकर पुनः एक विशाल प्रदर्शन कर ‘‘रोटी की मांग‘‘ तथा ‘‘युद्ध बन्‍द‘‘ करने के नारे दिए।

सेना द्वारा गोली चलाने से इंकार करने की परिस्थिति मजदूरों के पक्ष में प्रबल हो गई।

हड़ताली मजदूरों ने सैनिकों के साथ मिलकर ‘‘सैनिकों एंव मजदूरों‘‘ की एक क्रांतिकारी सोवियत समिति बना ली थी।

अतः विपरीत परिस्थितियों से विवश जार ने समझौता कर पेट्रोग्राड का प्रशासन उदारवादी नेता जार्जल्‍वाव के अधीनस्‍था अस्‍थायी सरकार को सौंप दिया।

ज्इसके कारण जार को अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी जार के हटने के बाद शाशन व्यवस्था ड्यूमा (संसद) के पास चली गई।

जार के हटने के बाद शाशन की कमान पीएम ‘अलेक्जेंडर केरेन्सकी’ के पास आती है, जो कि मेंसविक दल से संबंधित थे, पीएम को चुनने के लिए चुनाव नहीं हुआ और न ही रूस विश्व युद्ध से बाहर निकला था।

बोल्शेविक दल के नेता ‘लियोन ट्रास्की’ ने मांग किया कि देश में तुरंत सुधार किया जाए और विश्व युद्ध से देश को बाहर निकाला जाए।

एक ही पार्टी से अलग होने के बावजूद मेंसविक दल ने बोल्शेविक दल के नेता की इन मांगों को नहीं मांग और उल्टे बोल्शेविक दल के नेताओं को गिरफ्तार करवा दिया।

अगस्त में रूस की आर्मी ने नई संसद को तख्ता पलट करने का प्रयास किया, इस कारण मेंसविक दल के पीएम को बोल्शेविक दल के रेड गार्ड (एक संगठन जिसमे लड़ाके होते थे) की मदद लेनी पड़ी, जिसने आर्मी के तख्त पलट को नाकाम किया।

लेनिन की प्रसिद्धि बढ़ने लगी, उन्हें मजदूरों का समर्थन मिलने लगा और बाद में बोल्शेविक समूह ने सरकार को बदल कर सत्ता में आई।

24 अक्टूबर को लेनिन के आदेश पर रेड गार्ड ने सेंटपिट्सबर्ग के सरकारी ऑफिस पर कब्जा कर लिया इसके बाद कुछ दिनों में रेड गार्ड द्वारा अन्य शहरों पर भी कब्जा कर लिया गया, जिसे ही बोल्शेविक क्रांति कहा जाता है।

इसके बाद रूस में गृह युद्ध का प्रारंभ हो जाता है, रेड गार्ड VS व्हाइट (मेंसविक दल) की लड़ाई में 20 से 30 लाख लोग मारे गए, जार और उसके परिवार की हत्या कर दी गई।

बोल्शेविक दल से संबंधित रेड गार्ड की शक्तियों को और बढ़ते हुए, इसे रेड आर्मी का नाम दिया गया।

इसके बाद बोल्शेविक दल ने कम्युनिष्ट सरकार की स्थापना की घोषणा कर दी, इसके बाद वर्ष 1922 में USSR का गठन हुआ।

रूसी क्रांति के परिणाम –

साम्यवादी शासन की स्थापना –

क्रांति का परिणाम यह हुआ कि पिछले तीन शताब्दियों से चले आ रहे रोमनोव राजवंश और जार राजतंत्र का अंत हो गया।

रूस के अंतिम सम्राट (जार) ‘निकोलस द्वितीय’ और उसके परिवार के अधिकांश सदस्यों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वर्षों से चले आ रहे राजतन्त्र के स्थान पर साम्यवाद की स्थापना हुई।

साम्‍यवाद का प्रचार –

इस क्रांति के माध्‍यम से साम्‍यवाद का प्रचार बड़ी तीव्र गति से हुआ। साम्‍यवाद आधे यूरोप और मध्य एशिया में फैल गया, आधुनिक विश्व में साम्यवाद का जन्म एवं प्रसार इसी क्रांति की देन है।

रूस की क्रांति के द्वारा ही कार्ल मार्क्स के विचार प्रसारित हो रहे हैं, अन्‍य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

हालांकि रूस में साम्यवाद का प्रभाव लगभग समाप्ति की कगार पर है, लेकिन बहुत से देशों में आज भी साम्यवाद एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक ताकत है।

पंचवर्षीय योजनाएँ –

स्टालिन के द्वारा दो पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि रूस का आर्थिक विकास काफी तेजी से हुआ और उसमें रूस को आशातीत सफलता मिली।

पंचवर्षीय योजनाओं की बदौलत ही रूस विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया।

हालांकि इसके पहले लेनिन के द्वारा आर्थिक सुधार किए गए जिससे राहत तो मिली लेकिन रूस में विकास नहीं हो पाया।

वर्ग संघर्ष की समाप्ति –

समुचित कानून और उसका अनुपालन न होने पर औद्योगिक विकास के साथ ही वर्ग संघर्ष भी बढ़ता जाता है।

अर्थात् श्रमिकों का अधिक से अधिक शोषण करने की सोचता है और श्रमिक वर्ग अधिक से अधिक पारिश्रमिक तथा सुविधाओं की माँग करता है। इस प्रकार, दोनों में संघर्ष बढ़ता ही जाता है

क्रांति के बाद उद्योगपतियों और पूँजीपतियों के समाप्त हो जाने से वर्ग संघर्ष का भी अंत हो गया, सरकार के द्वारा कारखानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

सामंतों एवं पूँजीपतियों का अंत –

श्रमिकों को अपने विकास के लिये आवश्यक साधन उपलब्ध होने लगे, जिससे उसका जीवन स्तर भी उन्नत हो गया, राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति ने श्रमिक वर्ग की मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद की।

सामंतों और पूँजीपतियों के स्थान पर अब श्रमिकों की प्रतिष्ठा बढ़ने लगी, सामंतों से उनकी जागीरें छीन ली गयी और उसे भूमिहीन किसानों में बांट दिया गया, सरकार के इस कदम ने किसानों एवं मजदूरों के शोषण को खत्म कर दिया, इस प्रकार रूसी सामंत प्रथा को खत्म कर दिया गया।

राष्ट्रीयता का विकास –

जार के समय रूस में राष्ट्र भावना का विशेष विकास नहीं हुआ था, लेकिन क्रांति ने रूसी लोगों के मन में राष्ट्र के प्रति उग्र भावना उत्पन्न की।

प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने में अपना गौरव समझने लगा, राष्ट्र की इसी भावना से दूसरे विश्व युद्ध में रूसियों ने जर्मनी से कड़ा मुकाबला किया और पूर्वी मोर्चे पर अंत में उसे बुरी तरह से पराजित किया।

रूस का युद्ध से पृथक होना –

सत्ता हाथ में आते ही बोल्शेविकों ने सभी राष्ट्रों से युद्ध बंद करने की अपील की। जब मित्र राष्ट्रों ने इस अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया तो लेनिन ने मित्र राष्ट्रों से पूछे बिना ही जर्मनी के साथ ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि करके रूस को युद्ध से पृथक कर दिया। रूसवासियों के लिये युद्ध समाप्त हो गया और अब वे अपनी आर्थिक समस्याओं के समाधान पर अपना ध्यान केंद्रित किया।

मित्र राष्ट्रों की नाराजगी –

विश्व युद्ध के समय जब रूस ने मित्र राष्ट्रों से पूछे बिना ही जर्मनी के साथ संधि कर ली तो उनका नाराज होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि पूर्वी मोर्चे से निश्चिन्त होकर जर्मनी को अपनी पूरी शक्ति का मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध पश्चिमी मोर्चे पर उपयोग करने का एक महत्वपूर्ण अवसर मिल गया।

बोल्शेविकों के द्वारा उठाए गए इस कदम ने मित्र राष्ट्रों को सोवियत सरकार का विरोधी बना दिया और इस कारण से उन्होंने भी साम्यवादियों का तख्ता पलटने में कोई कसर बाकी न रखीं।

शिक्षा का विकास –

क्रांति के बाद रूस में शिक्षा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व विकास हुआ, राजतन्त्र के समय शिक्षा प्राप्ति का अधिकार एवं सुविधाएँ कुछ ही परिवारों तक सीमित था।

लोकतंत्र के आने बाद शिक्षा व्यवस्था सरकार ने अपने हाथों में ले ली और निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था को लागू किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 1930 तक रूस की 90% आबादी शिक्षित हो गई।

रूसी क्रांति के जनक –

रूसी क्रान्ति का जनक लेनिन को कहा जाता है जिन्होंने रूस की क्रान्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

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Summary –

तो दोस्तों, रूस की क्रांति के बारे में यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं और यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂

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